sahir ludhiyanavi: "हम अम्न चाहते हैं मगर जुल्म के खिलाफ़ गर जंग लाज़मी हैं तो जंग ही सही" साहिर लुधियानवी की ये मकबूल नज़्म आत्म सम्मान को हौसला देता हैं।



 साहिर लुधियानवी : साहिर लुधियानवी एक ऐसे शायर थे जो जुल्म के आंखो में आंखे मिलाकर शेर, गजलें और नज़्म लिखते थे। ऐसा माना जाता हैं की जब जुल्म ज्यादा बढ़ता हैं तो हर दौर में शायर की शायरी ने ही इंकलाब की पहली नीव डालती हैं। और लोगों को जुल्म से लड़ने के लिए हौसला देता हैं।

ऐसे ही सबसे मकबूल शायर थे साहिर लुधियानवी जो उस दौर में भी सबसे ज्यादा लोगों के चहेते थे और आज के दौर में भी उनके लिखे शेर सबसे ज्यादा पढ़े जाते हैं। साहिर साहब ने हर तौर में और हर रंग में अपनी शायरी लिखी हैं। जब कोई मोहब्बत करता हैं तो वो अपने महबूबा के लिए साहिर साहब के गजलें सुनाता हैं। "मिलती है जिंदगी में मोहब्बत कभी कभी" लेकिन जब आत्म सम्मान की बात आती है या या किसी के उपर जुल्म हों रहा हो तो वो साहिर साहब का वो नज़्म पढ़कर अपने मनसूबों को जताता हैं।
तो आइए जानते हैं उनकी वो नज़्म कौन सी हैं।

हम अमन चाहते हैं मगर जुल्म के खिलाफ़
गर जंग लाज़मी हैं तो फिर जंग ही सही 
जालिमो को जो न रोके वो शामिल है जुल्म में
कातिलों को जो न टोके वो कातिल के साथ हैं
ज़ालिम की कोई जाति न कोई मज़हब न कोई कौम
ज़ालिम के लब पे जिक्र भी इनका गुनाह है
ये जर की जंग हैं न जमीनों की जंग हैं 
ये  जंग  है  बका  के  वसूलों  के  वास्ते 
जो खून हमने नजर दिया है जमीनों को 
वो खून है गुलाब के फूलों के वास्ते
फूटेगी सुबह ए अमन  लहू –रंग ही सही


~साहिर लुधियानवी 

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