Nasim nikahat: उर्दू अदब की मशहूर शायरा डॉ. नसीम निकहत जिन्हें उर्दू शायरी को बुलंदी तक पहुंचने का श्रेय जाता हैं। इन्होंने ने उर्दू शायरी के जरिए महिलाओं के दुखों – सुखों को लोगो तक पहुंचाया, नसीम निकहत मुशायरों की अहम हिस्सा माना जाता हैं। डॉ. नसीम निकहत का जन्म 10 जून 1959 को हुआ था, इनका पालन पोषण नवाबों के शहर लखनऊ में ही हुआ और यही से उर्दू अदब को आगे बढ़ाने लगी, कई साल तक अपने शायरी से लोगो के दिलों पर राज करने वाली नसीम निकहत ने 29 अप्रैल 2023 को इस दुनियां से अलविदा हो गई। आइए जानते है इनके लिखे मशहूर गजलें और शेर..
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नसीम निकहत |
नसीम निकहत के ग़ज़ल
• उसे अपने फ़न पे जो मान था सो नहीं रहा।।
कभी वो भी जादू-बयान था सो नहीं रहा।।
मुझे दूसरों के मुक़ाबले किया मुस्तरद।।
मगर इन दिनों वो जवान था सो नहीं रहा।।
मिरे लखनऊ तिरी शक्ल कितनी बदल गई।।
ये जो शहर अहल-ए-ज़बान था सो नहीं रहा।।
मिरे दिल की रुत भी तिरी तरह ही बदल गई।।
मुझे हर घड़ी तिरा ध्यान था सो नहीं रहा।।
नए आसमाँ की तलाश में मैं भटक गई।।
कभी तू ही मेरी उड़ान था सो नहीं रहा।।
• बंजारे हैं रिश्तों की तिजारत नहीं करते।।
हम लोग दिखावे की मोहब्बत नहीं करते।।
तूफ़ान से लड़ने का सलीक़ा है ज़रूरी।।
हम डूबने वालों की हिमायत नहीं करते।।
मिलना है तो आ जीत ले मैदान में हम को।।
हम अपने क़बीले से बग़ावत नहीं करते।।
• कहीं दिन गुज़र गया है कहीं रात कट गई है।।
ये न पूछ कैसे तुझ बिन ये हयात कट गई है।।
न तुझे ख़बर है मेरी न मुझे ख़बर है तेरी।।
तिरी दास्ताँ से जैसे मिरी ज़ात कट गई है।।
ये उदास उदास मौसम ये ख़िज़ाँ ख़िज़ाँ फ़ज़ाएँ।।
वही ज़िंदगी थी जितनी तिरे साथ कट गई है।।
तिरे इंतिज़ार में मैं जली ख़ुद चराग़ बन कर।।
तिरी आरज़ू में अक्सर यूँही रात कट गई है।।
ये तिरा मिज़ाज तौबा ये तिरा ग़ुरूर तौबा।।
तिरी बज़्म में हमेशा मिरी बात कट गई है।।
ये किताब क़िस्मतों की लिखी किस क़लम ने निकहत।।
कहीं पर तो शह कटी है कहीं मात कट गई है।।
• दिन ख़्वाबों को पलकों पे सजाने में गुज़र जाय
रात आये तो नींदों को मनाने में गुज़र जाय
जिस घर में मेरे नाम की तख्ती भी नहीं है
एक उम्र उसी घर को सजाने में गुज़र जाय
• मैं उसे ज़िन्दगी सौंप कर उसके आँगन की बांदी रही
मुझको दो रोटियाँ देके वो ये समझता है रब हो गया
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