Mother Teresa: आज भारत रत्न मदर
टेरेसा की 112 वीं जयंती हैं। इन्होंने ने अपना
पूरा जीवन जरूरतमंद और पीड़ितों के लिए लगा
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दिया। मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 में
मेसेडोनिया में हुआ था । मदर टेरेसा रोमन
कैथोलिक नन थी । इनके पिता निकोला बोयाजू
एक साधारण व्यवसाई थे । जब मदर टेरेसा 8
साल की थी तभी इनके पिता का मृत्यु हो गई
थी। मदर टेरेसा का असली नाम "अगनेश गोझा
बोयाजिजू" था इनके पिता की मृत्यु के बाद
इनकी जिम्मेदारी सारी इनके माता पर आ गई
जिनका नाम द्राना बोयाजू था। मदर टेरेसा जब
12 साल की हुई तो इन्हे ये आभास हुआ की ये
अपना पूरा जीवन लोगो की सेवा करने में
लगाएंगी। पिता के जानें के बाद घर में गरीबी ने
जकड़ लिया जैसे तैसे कर के इनका परिवार
चलता था।
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जब मदर टेरेसा 18 वर्ष की हुई तो इन्होंने
"सिस्टर्स ओस लोरेटो" ( sisters of Loretto
) को ज्वॉइन कर लिया उसके बाद ये आयरलैंड
चली गई जहां इन्होंने ने अंग्रेजी भाषा को सीखा।
लोगों की सेवा करने का लिया
संकल्प!
मदर टेरेसा खुद लिखती है की 10 सितंबर
1940 का दिन था जब मैं अपने वार्षिक
अवकाश पर दार्जिलिंग जा रही थी , तभी मेरी
अंतर आत्मा से आवाज़ उठी की मुझे सब कुछ
त्याग कर देना चाहिए, और ईश्वर के द्वारा भेजे
गए लोगों कि सेवा में पूरा जीवन लगा देना
चाहिए। बस उसी दिन से लोगों की सेवा में
अपना तन मन समर्पित कर दिया।
उसके बाद से ये भारत में आकर कर 1940 में
कोलकाता में "मिशनरीज ऑफ चैरिटी" की
स्थापना की जहां बीमार लाचारों की देखभाल
करती थीं।
मदर टेरेसा ने दलितों पीड़ितों की खूब सेवा की
भूखों के लिए रोटी का इंतज़ाम किया बीमारों के
लिए दावा का दम तोड़ने वालों के लिए प्यार का
सहारा दिया, इन्होंने ने किसी के भी साथ जरा सा
भी बेगानों जैसे बर्ताव नहीं किया सब को अपना
माना भारत में हजारों लोगों की सेवा की अपने
चैरिटी के माध्यम से लाखों लोगों की सहारा बनी।
इनके इस कार्य को देखते हुए भारत सरकार ने
इन्हें 1962 में इन्हें पद्म श्री अवॉर्ड से नवाजा और बनारस
हिंदू विश्वविद्यालय से इन्हे डी लिट की उपाधि दी
गई उसके बाद 19 दिसंबर 1979 को मानव
कल्याण में काम करने के लिए इन्हें "नोबेल
शांति" पुरस्कार से नवाजा गया । उस वक्त मदर
टेरेसा ये पुरस्कार पाने वाली विश्व की तीसरी
व्यक्ति थी।
इन्होंने ने अपना जीवन देश भर में लोगों की सेवा
के लिए लगा दिया इन्हे कई देशों की नगरिया भी
मिली थी। लेकिन इन्हें सभी देशों से ज्यादा भारत
बहुत पसंद था इसलिए ये ज्यादा तर यही रही
और अंत में भारत में ही दम तोड़ा। 5 सितंबर
1997 को मदर टेरेसा ने दुनियां को अलविदा
कह दिया।
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