Anniversary: डॉ. राहत इंदौरी 21वीं सदी
के सबसे महान और सबसे मकबूल शायरों में
शुमार हैं, इनके लिखें शेर सड़क से लेकर संसद
तक में पढ़ा जाता हैं । राहत इंदौरी का जन्म 1
जनवरी 1950 को इंदौर में हुआ था। राहत
बचपन से ही पढ़ने लिखने में बहुत शौकीन थे,
राहत इंदौरी का असली नाम राहत कुरैशी था
इनके पिता नाम रफतुल्लाह कुरैशी था और
इनकी मां का नाम मकबूल उन निशा बेगम था।
राहत साहब ने 1973 में इस्लामिया करीमिया
इंदौर से स्नातक की डिग्री हासिल की और उसके
बाद 1975 में बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय
भोपाल से ऊर्दू साहित्य से एम.ए किया उसके
बाद इन्होंने ने मध्य प्रदेश के भोजमुक्त
विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में PHD की डिग्री
हासिल की।
राहत इंदौरी फुटबॉल और हांकी
टीम के कैप्टन भी थे।
महज़ 19 साल के उम्र से शेर
लिखना शुरू किया।
राहत इंदौरी द्वारा लिखी किताबें.
पूरी दुनियां के मुशायरो में राहत
साहब ने अपना छाप छोड़ दिया हैं
राहत इंदौरी ने जब मुशायरे में शिरकत करने लगे
तो इन्हे पहचान बनाने में ज्यादा समय नहीं लगा
और इसके शेर को सुन कर हर कोई अपने
मुशायरे में बुलाने लगा। राहत साहब ने अपने
जीवन में इन देशों में कई बार मुशायरा पढ़ने गए
थे जैसे, दुबई, अमेरिका, सऊदी अरब, अमीरात,
पाकिस्तान , बांग्लादेश, नेपाल, कुवैत, बहरीन,
मॉरिशस, कनाडा, सिंगापुर, आस्ट्रेलिया, कतर,
ब्रिटेन, इंग्लैंड जैसे देशों में राहत साहब कई बार
अपने गजलें, नज्में और शेर पढ़ने गए थे । इन
सभी देशों के लोग राहत साहब के आज भी बहुत
बड़े फैन हैं।
राहत इंदौरी को कई बड़े अवॉर्ड
से नवाजा गया था।
अपने शायरी से इंकलाब पैदा करने
के लिए जानें जाते हैं।
कोरोना होने की वजह से राहत
साहब इस दुनियां को अलविदा कह
दिया था
2020 में जब पूरा देश कोरोना जैसी बीमारी से
जूझ रहा था लाखों लोग अपनी जान गवां दिया
था इसी बीच राहत साहब को भी 10 अगस्त को
कोरोना हो गया था और 11 अगस्त को इस
दुनियां को अलविदा कह दिया था। राहत साहब
को आज गए 2 वर्ष बीत गया है लेकिन इनकी
दिवानगी कम नहीं हुआ हैं, आज भी लोगों के
दिलों में बसते हैं आज भी इनके शेर लोगों के
जुबान पर रहता हैं।
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