रईस अमरोहवी : उर्दू अदब के शायर रईस अमरोहवी (Rais Amrohavi) आज के दौर के सबसे ज्यादा चहीते और पढ़ें जानें वाले शायर जॉन एलिया के भाई थे। इनका जन्म 12 सितंबर 1914 को अमरोहा में हुआ था, आज़ादी के बाद कराची पाकिस्तान में जा कर बस गए थे। और वहीं पर कई विषयों पर लगभग 30 से ज्यादा किताबें लिखीं थी। रईस अमरोहवी अपने ग़ज़ल और शायरी के लिए जानें जाते हैं।
रईस अमरोहवी के ग़ज़ल और शेर..
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1. ख़ामोश जिंदगी जो बसर कर रहें हैं हम
गहरे समंदर में सफ़र कर रहे हैं हम
जर्रे को ज़ख़्म दिल को तवज्जों किए बगैर
दरमान–ए–दर्द–ए–शम्स–ओ कमर कर रहें हैं हम
हम अपनी जिंदगी बसर कर चूके रईस
ये किसकी जीस्त हैं जो बसर कर रहे है हम
2. अपने को तलास कर रहा हु अपनी ही तलब से डर रहा हू
तुम लोग हों आंधियों के जद में
मैं कहत–ए –हवा से मर रहा हू
एक शख्स से तल्ख –काम हो कर
हर शख्स से प्यार कर रहा हु
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3. दीदनी है बहार का मंज़र ज़हर छिड़का गया दरख़्तो पर
चील कौव्वों को ताकते रहिए
चांद तारों से थक गई है नज़र
न सहाबा न कोई तय्यारा
कौन उड़ कर गया इधर से उधर
रईस अमरोहवी के शेर
4. सिर्फ़ तारीख की रफ़्तार बदल जायेगी
नई तारीख के वारिश यहीं इंसा होंगे
5. आदमी की तलास में हैं खुदा
आदमी को ख़ुदा नहीं मिलता
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6. पहले भी ख़राब थी ये दुनियां
अब और ख़राब हो गई हैं
7. दिल कई रोज़ से धड़कता हैं
हैं कोई हादसे की तैयारी
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