Munawwar Rana shayari: मुनव्वर राना कि 5 मशहूर गजलें

Munawwar Rana shayari : उर्दू अदब के मकबूल ओ मारूफ शायर मुनव्वर राना के लिखें गजलें न सिर्फ़ हिंदुस्तान में बल्कि कई और मुल्कों में पढ़ा जाता हैं । मुजाहिद नाम मुन्नवर राना का सबसे मशहूर गज़ल हैं आइए जानते हैं इनकी 5 बड़ी गजले कौन सी हैं।


मुनव्वर राना 


इसे भी मीर तकी मीर के बारे में पढ़िए

 इसे हज़रत अल्लामा इक़बाल को पढ़िए


•बादशाहों को सिखाया है क़लंदर होना

आप आसान समझते हैं मुनव्वर होना


सिर्फ़ बच्चों की मोहब्बत ने क़दम रोक लिए

वर्ना आसान था मेरे लिए बे-घर होना


एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है

तुम ने देखा नहीं आँखों का समुंदर होना


हम को मा'लूम है शोहरत की बुलंदी हम ने

क़ब्र की मिट्टी का देखा है बराबर होना


इस को क़िस्मत की ख़राबी ही कहा जाएगा

आप का शहर में आना मिरा बाहर होना


सोचता हूँ तो कहानी की तरह लगता है

रास्ते से मिरा तकना तिरा छत पर होना


मुझ को क़िस्मत ही पहुँचने नहीं देती वर्ना

एक एज़ाज़ है उस दर का गदागर होना


सिर्फ़ तारीख़ बताने के लिए ज़िंदा हूँ

अब मिरा घर में भी होना है कैलेंडर होना



• घर में रहते हुए ग़ैरों की तरह होती हैं

लड़कियाँ धान के पौदों की तरह होती हैं


उड़ के इक रोज़ बहुत दूर चली जाती हैं

घर की शाख़ों पे ये चिड़ियों की तरह होती हैं


टूट कर ये भी बिखर जाती हैं इक लम्हे में

कुछ उमीदें भी घरोंदों की तरह होती हैं


सहमी सहमी हुई रहती हैं मकान-ए-दिल में

आरज़ूएँ भी ग़रीबों की तरह होती हैं


आप को देख के जिस वक़्त पलटती है नज़र

मेरी आँखें मिरी आँखों की तरह होती हैं



• अच्छी से अच्छी आब-ओ-हवा के बग़ैर भी

ज़िंदा हैं कितने लोग दवा के बग़ैर भी


साँसों का कारोबार बदन की ज़रूरतें

सब कुछ तो चल रहा है दुआ के बग़ैर भी


बरसों से इस मकान में रहते हैं चंद लोग

इक दूसरे के साथ वफ़ा के बग़ैर भी


अब ज़िंदगी का कोई भरोसा नहीं रहा

मरने लगे हैं लोग क़ज़ा के बग़ैर भी


चारागरी बताए अगर कुछ इलाज है

दिल टूटने लगे हैं सदा के बग़ैर भी


हम बे-क़ुसूर लोग भी दिलचस्प लोग हैं

शर्मिंदा हो रहे हैं ख़ता के बग़ैर भी



• सारी दौलत तिरे क़दमों में पड़ी लगती है

तू जहाँ होता है क़िस्मत भी गड़ी लगती है


ऐसे रोया था बिछड़ते हुए वो शख़्स कभी

जैसे सावन के महीने में झड़ी लगती है


ख़ुशनुमा लगते हैं दिल पर तिरे ज़ख़्मों के निशाँ

बीच दीवार में जिस तरह घड़ी लगती है


हम भी अपने को बदल डालेंगे रफ़्ता रफ़्ता

अभी दुनिया हमें जन्नत से बड़ी लगती है


तू मिरे साथ अगर है तो अंधेरा कैसा

रात ख़ुद चाँद सितारों से जड़ी लगती है


मैं रहूँ या न रहूँ नाम रहेगा मेरा

ज़िंदगी उम्र में कुछ मुझ से बड़ी लगती है



• तुम्हारे जिस्म की ख़ुश्बू गुलों से आती है

ख़बर तुम्हारी भी अब दूसरों से आती है


हमीं अकेले नहीं जागते हैं रातों में

उसे भी नींद बड़ी मुश्किलों से आती है


हमारी आँखों को मैला तो कर दिया है मगर

मोहब्बतों में चमक आँसुओं से आती है


इसी लिए तो अँधेरे हसीन लगते हैं

कि रात मिल के तिरे गेसुओं से आती है


ये किस मक़ाम पे पहुँचा दिया मोहब्बत ने

कि तेरी याद भी अब कोशिशों से आती है


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