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Allama Iqbal: दुनियां के महान् उर्दू शायर ( The world greatest Urdu shayar) और पाकिस्तान (pakistan) के राष्ट्र कवि {National Poet} डॉ. अल्लामा इक़बाल {Dr.Allama Iqbal} अपनी उर्दू शायरी ( Urdu shayari) से नए युग का निर्माण किया। अल्लामा इक़बाल { allama iqbal} का जन्म 9 नवंबर 1877 ई. को सियालकोट पाकिस्तान {Siyalkot Pakistan} में हुआ था, अल्लामा इक़बाल {Allama Iqbal} का असली नाम शेख़ मोहम्मद इक़बाल {Shekh Mohammad Iqbal} था, इनके वालिद ( Father) का नाम शेख़ नूर मोहम्मद {Shekh Noor Mohammad} था, जो ज्यादा पढ़े लिखें तो नही थे मगर दिनदार थे और उल्मा के साथ बैठते उठते थे। इनके पूर्वज कश्मीरी ब्राह्मण थे जो इस्लाम {Islam} कबूल कर के सियालकोट पाकिस्तान में बस गए थे। अल्लामा इक़बाल { allama iqbal } के मां {Mother} का नाम इमाम बीबी {Imam Bibi} था। अल्लामा इक़बाल {Allama Iqbal} की शुरुआती शिक्षा मकतब प्राइमरी , मिडिल और मैट्रिक से पूरी की
उसके बाद एफ. ए. स्कॉच ( F.A Scach) स्कूल लाहौर {Lahaur} से बीए ( BA) में दाखिला लिया। उसके बाद 1899 में अल्लामा इक़बाल {allama iqbal} ने दर्शनशास्त्र ( philosphy) में एमए ( M.A) की डिग्री हासिल की और फिर उसी कॉलेज में प्रोफ़ेसर बन गए। कुछ साल प्रोफेसर का काम करने के बाद इक़बाल उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड ( engaland) चले गए और वहां कैंब्रिज में दाखिला लिया। जिसके बाद दर्शन शास्त्र ( philosphy) में उच्च शिक्षा की डिग्री हासिल कि। पीएचडी ( PHD) के शोध के लिए ईरान और इर्तिका भी गए और अपनी पीएचडी पूरी कि। PHD कि डिग्री पूरी करने के बाद डॉ. अल्लामा इक़बाल {Dr.Allama Iqbal} बन गए, इक़बाल ने लंदन ( England) से ही बैरिस्ट्री (Advocat) की भी पढ़ाई पूरी कि और डिग्री हासिल करने के बाद लाहौर आ गए जहां गवर्मेंट कॉलेज में प्रोफ़ेसर नियुक्त किए गए, और लगे हाथ वकालत भी करते रहें। लेकिन कॉलेज में दो काम एक साथ करने की अनुमति नहीं थी, तो अल्लामा इक़बाल {Allama Iqbal} ने प्रोफ़ेसर की नौकरी छोड़ दी और वकालत को अपना पेशा बना लिया।
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Allama Iqbal ( photo social media) |
अल्लामा इक़बाल {Allama Iqbal} ने कम उम्र में ही शायरी शुरू कर दी थीं , सन 1890 के एक मुशायरे में अल्लामा इक़बाल {allama iqbal} महज़ 17 साल कि उम्र में ये नज़्म पढ़ कर "मोती समझ के शान–ए–करीमी ने चुन लिए " को पढ़कर उस दौर के बड़े बड़े शायरों को चौंका दिया, अपना कद ऊंचा कर लिया, उसके बाद अल्लामा इक़बाल {allama iqbal} को जलसों से भी बुलावा आने लगा और अंजुमन के जलसे में अपनी मशहूर नज़्म "नाला –ए –यतीम" पढ़ी जो लोगों में काफ़ी ज्यादा पॉपुलर हुई, और यतिमों की सहायता के लिए इस नज़्म {Nazm} पर रूपयों की बारिश होने लगीं, और सुनने वालों के आंखों से आंसू बहनें लगी। इस नज़्म को पढ़ने के बाद इक़बाल जलसों और मुशायरों का ज़रूरी हिस्सा बन गए। अल्लामा इक़बाल {allama iqbal} की शायरी लोगों के जुबां पर चढ़ गई। और इक़बाल का रुतबा बुलंद होता चला गया।
पढ़ाई के दौरान अल्लामा इक़बाल {allama iqbal} कुछ साल उर्दू शायरी {urdu shayari} से दूर रहें लेकिन दुबारा जब शायरी की दुनियां में लौटे तो कौमी–ओ –मिल्ली नज्मों और शायरी का सिलसिला शुरू किया , जो इस्लाम {Islam} का परचम बुलंद करने के लिए पूरी दुनियां में शोहरत का जरिया बना। उसमें तुलुअ –ए –इस्लाम, शिकवा, शम्मा–ओ–शायर अंजुमन के जलसों में पढ़ी। डॉ. डा. अल्लामा इक़बाल {Dr. allama iqbal} जलसों में अपने शेर और नज़्म से मुसलमानों में ईमान की रोशनी जलाते थे, और इस्लाम के सही मायने में मतलब समझाते थे। अल्लामा इक़बाल {allama iqbal} और इस्लाम के आख़िरी पैगंबर मोहम्मद साहब का हमेशा जिक्र करते थे और मुसलमानों को इनकी अहमियत बताते थे।
इसी दौरान अल्लामा इक़बाल ने जवाब –ए–शिकवा { Jawab e shikwa} नाम से एक नज़्म लिखीं जिसके आखिरी मिसरा में ये लिखा की...
कि मोहम्मद से वफा तूने तो हम तेरे हैं
ये जहां क्या चीज़ लौह–ओ–कलम तेरे हैं
इस नज़्म के आख़िरी शेर से डॉ. अल्लामा इक़बाल {dr. Allama Iqbal} को इस्लामी दुनियां में इतना शोहरत मिली जो आज तक किसी शायर को नहीं मिली, बड़े बड़े उलेमाओं ने तो यहां तक कह दिया कि खुदा इस शेर के बदले अल्लामा इक़बाल के सारे गुनाहों को माफ़ फरमा दिया होगा।
अल्लामा इक़बाल कि शादी. marriage of allama iqbal
डॉ. अल्लामा इक़बाल ने अपनी पूरी जिदंगी में 3 शादियां की
पहली शादी – करीम बीबी से किया जिससे एक बेटी मिराज़ बेगम और एक बेटा आफताब इक़बाल पैदा हुए.
दूसरी शादी – सरदार बेगम से किया जिससे अल्लामा इक़बाल को एक और बेटे जावेद इकबाल हुए.
तीसरी शादी – मुख्तार बेगम से की लेकिन इनसे कोई संतान न मिल सका।
डॉ. अल्लामा इक़बाल की मृत्यु कैसे हुई? How did Dr.allama iqbal die?
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Allama Iqbal shayari |
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अल्लामा इक़बाल {allama iqbal} की शायरी दुनियां और अखिरत की रोशनी हैं, जो लोगो में जुनून की अलख जलाती हैं। जब अल्लामा इक़बाल पढ़ाई पूरी कर के वतन लौटे तो देखा अंग्रेजो द्वारा अखंड भारत पर जुल्म कर रहे थे , तो इक़बाल ने एक शेर के ज़रिए हिन्दुस्तानियों में इंकलाब पैदा किया और लिखा की..
"वतन की फ़िक्र कर नादां मुसीबत आने वाली है
तेरी बरबादियों के चर्चे हैं आसमानों में"
"ना समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिन्दोस्तां वालों
तुम्हारी दास्ताँ तक न होगी दास्तानों में"
अल्लामा इक़बाल को कई नामों से जाना जाता हैं
1.विद्वान् इक़बाल
2.मुफ्फकिर-ए-पाकिस्तान
( पाकिस्तान का विचारक )
3.शायर-ए-मशरीक
(पूरब का शायर)
4.हकीम-उल-उम्मत
( उम्मा का विद्वान् )
और भी कई नामों से जाना जाता हैं.
डॉ. अल्लामा इक़बाल के शेरों से अंग्रेज़ी हुकूमत प्रभावित होकर इनको "सर" की उपाधि से सम्मानित किया।
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Allama Iqbal poetry |
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इकबाल के तराने
सारे जहां से अच्छा , Sare jaha se achchha
सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता हमारा ..
हम बुलबुले है इसके ये गुलसिता हमारा..
गुरबत में हो हम तो रहता है दिल वतन में..
समझो हमे वहीं जहां दिल हो हमारा..
सारे जहां से अच्छा.........
परबत वो सबसे ऊँचा , हमसाया आसमाँ का
वो संतरी हमारा वो पासबाँ हमारा
गोदी में खेलती हैं, उसकी हज़ारों नदियाँ।
गुलशन है जिनके दम से, रश्क-ए-जिनाँ हमारा
सारे जहां से अच्छा....
मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम वतन हैं, हिन्दोस्ताँ हमारा
यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रूमा, सब मिट गए जहाँ से।
अब तक मगर है बाक़ी, नाम-ओ-निशाँ हमारा
सारे जहां से अच्छा....
कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-ज़माँ हमारा
सारे जहां से अच्छा....
लब पे आती है दुआ बन के. Lab pe aati hai dua ban ke
अल्लामा इकबाल देश भक्ति शायरी
लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी।।
ज़िंदगी शम्अ की सूरत हो ख़ुदाया मेरी।।
दूर दुनिया का मिरे दम से अँधेरा हो जाए।।
हर जगह मेरे चमकने से उजाला हो जाए।।
हो मिरे दम से यूँही मेरे वतन की ज़ीनत।।
जिस तरह फूल से होती है चमन की ज़ीनत।।
ज़िंदगी हो मिरी परवाने की सूरत या-रब।।
इल्म की शम्अ से हो मुझ को मोहब्बत या-रब।।
हो मिरा काम ग़रीबों की हिमायत करना।।
दर्द-मंदों से ज़ईफ़ों से मोहब्बत करना।।
मिरे अल्लाह! बुराई से बचाना मुझ को।।
नेक जो राह हो उस रह पे चलाना मुझ को।।
अल्लामा इक़बाल के ग़ज़ल
• अफ़्लाक से आता है नालों का जवाब आख़िर।।
करते हैं ख़िताब आख़िर उठते हैं हिजाब आख़िर।।
मय-ख़ाना-ए-यूरोप के दस्तूर निराले हैं।।
लाते हैं सुरूर अव्वल देते हैं शराब आख़िर।।
ख़ल्वत की घड़ी गुज़री जल्वत की घड़ी आई।।
छुटने को है बिजली से आग़ोश-ए-सहाब आख़िर।।
था ज़ब्त बहुत मुश्किल इस सैल-ए-मआनी का।।
कह डाले क़लंदर ने असरार-ए-किताब आख़िर।।
allama iqbal ghazals
• निगाह-ए-फ़क़्र में शान-ए-सिकंदरी क्या है।।
ख़िराज की जो गदा हो वो क़ैसरी क्या है।।
बुतों से तुझ को उमीदें ख़ुदा से नौमीदी।।
मुझे बता तो सही और काफ़िरी क्या है।।
फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का।।
न हो निगाह में शोख़ी तो दिलबरी क्या है।।
इसी ख़ता से इताब-ए-मुलूक है मुझ पर।।
कि जानता हूँ मआल-ए-सिकंदरी क्या है।।
किसे नहीं है तमन्ना-ए-सरवरी लेकिन।।
ख़ुदी की मौत हो जिस में वो सरवरी क्या है।।
ख़ुश आ गई है जहाँ को क़लंदरी मेरी।।
वगर्ना शेर मिरा क्या है शाइरी क्या है।।
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Allama Iqbal ghazals |
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allama iqbal best ghazals
• तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ।।
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ।।
ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को।।
कि मैं आप का सामना चाहता हूँ।।
ज़रा सा तो दिल हूँ मगर शोख़ इतना।।
वही लन-तरानी सुना चाहता हूँ।।
सितम हो कि हो वादा-ए-बे-हिजाबी।।
कोई बात सब्र-आज़मा चाहता हूँ।।
भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी।।
बड़ा बे-अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ।।
अल्लामा इकबाल के शेर
• न आते हमें इस में तकरार क्या थी।।
मगर वादा करते हुए आर क्या थी।।
भरी बज़्म में अपने आशिक़ को ताड़ा।।
तिरी आँख मस्ती में हुश्यार क्या थी।।
तअम्मुल तो था उन को आने में क़ासिद।।
मगर ये बता तर्ज़-ए-इंकार क्या थी।।
तुम्हारे पयामी ने सब राज़ खोला।।
ख़ता इस में बंदे की सरकार क्या थी।।
कहीं ज़िक्र रहता है इक़बाल तेरा।।
फ़ुसूँ था कोई तेरी गुफ़्तार क्या थी।।
अल्लामा इकबाल की गजल
• न तू ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए।।
जहाँ है तेरे लिए तू नहीं जहाँ के लिए।।
ये अक़्ल ओ दिल हैं शरर शोला-ए-मोहब्बत के।।
वो ख़ार-ओ-ख़स के लिए है ये नीस्ताँ के लिए।।
रहेगा रावी ओ नील ओ फ़ुरात में कब तक।।
तिरा सफ़ीना कि है बहर-ए-बे-कराँ के लिए।।
ज़रा सी बात थी अंदेशा-ए-अजम ने उसे।।
बढ़ा दिया है फ़क़त ज़ेब-ए-दास्ताँ के लिए।।
मिरे गुलू में है इक नग़्मा जिब्राईल-आशोब।।
संभाल कर जिसे रक्खा है ला-मकाँ के लिए।।
अल्लामा इक़बाल के शेर
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Allama Iqbal shayari |
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• तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा।।
तिरे सामने आसमाँ और भी हैं।।
Tu shahi hai parvaz hai kaam tera
Tire samne asama aur bhi hai
~allama Iqbal
allama Iqbal poetry
• हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है।।
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा।।
Hajaron sal nargish apni be noori pe roti hai
Badi mushkil se hota hai chaman me dida var paida
~allama Iqbal
allama iqbal shayari
• इल्म में भी सुरूर है लेकिन।।
ये वो जन्नत है जिस में हूर नहीं।।
Ilm me bhi surur hai lekin
Ye vo jannat hai jis me hoor nahi
~allma Iqbal
iqbal poetry / Iqbal shayari
• दिल से जो बात निकलती है असर रखती है।।
पर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है।।
Dil se jo baat nikalti hai asar rakhti hai
Par nahi taakt e parvaz magar rakhti hai
~allama Iqbal
allama iqbal ki shayari
• हया नहीं है ज़माने की आँख में बाक़ी।।
ख़ुदा करे कि जवानी तिरी रहे बे-दाग़।।
Haya nahi hai jamane ki aankhon me baaki
Khuda kare ki javani teri rahe be dagh
~ allama iqbal
allama iqbal shayari in Hindi
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Allama Iqbal shayari |
• सौ सौ उमीदें बंधती है इक इक निगाह पर।।
मुझ को न ऐसे प्यार से देखा करे कोई।।
Sau sau ummide bandhti hai ek nigah par
Mujh ko na ese pyar se dekha kare koi
~allama Iqbal
iqbal ki shayari
• सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा।।
हम बुलबुलें हैं इस की ये गुलसिताँ हमारा।।
Sare jaha se achha hindosta hamara
Ham bulbule hai is ke ye gulsita hamara
~allama Iqbal
allama iqbal ke sher
• बातिल से दबने वाले ऐ आसमाँ नहीं हम।।
सौ बार कर चुका है तू इम्तिहाँ हमारा।।
Batil se dabane vale e aasma nahi ham
Sau baar kar chuka hai tu inteha hamara
~allama Iqbal
Love allama iqbal poetry
• बुतों से तुझ को उमीदें ख़ुदा से नौमीदी।।
मुझे बता तो सही और काफ़िरी क्या है।।
Buton se tujh ko ummide khuda se na ummidi
Mujhe bata to sahi aur kafiri kya hai
~ allama iqbal
motivational allama iqbal shayari in hindi
• सितारों से आगे जहाँ और भी हैं।।
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं।।
Sitaron se aage jaha aur bhi hai
Abhi ishq ke imteha aur bhi hai
~allama Iqbal
allama iqbal quotes
• तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ।।
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ।।
Tere ishq ki inteha chahta hu
Meri sadgi dekh kya chahta hu
~ allama Iqbal
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