Khwaja Mir Asar: मीर असर: “क्या कहूं किस तरह से जीता हूं गम को खाता हूं आंसू को पीता हूं ” मीर असर के रूहानी शेर पढ़िए!

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Mir Asar : मीर असर इनका असली नाम ख़्वाजा मोहम्मद मीर असर देलहवी था। इनका जन्म 1795 में दिल्ली में हुआ था। ये सूफ़ी शायर ख्वाजा मीर दर्द के छोटे भाई हैं। शायरी का शुरुआती दौर इन्होंने ने अपने भाई से ही सीखा हैं। इनके गज़ल और शेर में रूहानियत और मज़हबी का बेहतरीन मेल देखने को मिलता हैं। ख़्वाजा मीर असर ने अपनी गजलों में नए शब्दों को मिलाकर गजलें लिखी हैं।


ख़्वाजा मीर असर 

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ख़्वाजा मीर असर के गजलें! 


1. दिल में सौ आरमान रखता हूँ
प्यारे आख़िर मैं जान रखता हूँ।

आह तेरे भी ध्यान में कुछ है
किस क़दर तेरा ध्यान रखता हूँ।

वाह-री अक़्ल तुझ से दुश्मन से
दोस्ती का गुमान रखता हूँ।

तुझ से हर बार मिल के मैं बे-सब्र
न मलूँ फिर ये ठान रखता हूँ।



2. न बर्क़ न शोला ने शरर हूँ।
जो कहिए सो क़िस्सा मुख़्तसर हूँ।।

ये ख़ैर है ख़ैर-ए-महज़ है तो।
बंदा गंदा जो मैं बशर हूँ।।

जूँ शोला मियान-ए-बे-क़रारी।
क़ाएम अपने क़रार पर हूँ।।

जूँ अक्स मेरा कहाँ ठिकाना।
तेरे जल्वे से जल्वा-गर हूँ।।

हूँ लग़व मैं आप अपनी ज़ातों।
औरों का नफ़अ ने ज़रर हूँ।।


3.हम ग़लत एहतिमाल रखते थे।
तुझ से क्या क्या ख़याल रखते थे।।

न सुना था किसू ने ये तो ग़ुरूर।
सभी दिलबर जमाल रखते थे।।

आह वो दिन गए कि हम भी 'असर'।
दिल को अपने सँभाल रखते थे।।


मीर असर के रूहानी शेर!


1.क्या कहूं किस तरह से जीता हूं गम को खाता हूं आंसू को पीता हूं

2.बेवफ़ा कुछ नही तेरी तकसीर मुझको मेरी वफ़ा ही रास नहीं

3.यूं खुदा की खुदाई बर – हक़ हैं पर असर की हमे आस नहीं।

4. तू कहां मै कहां प रहते हैं की आपस में दोनों रहते हैं

5.न लगा ले गए जहां दिल को आह ले जाइए कहां दिल को

मुझ से ले तो चले हो देखो पर तोड़िए मत मिया कहीं दिल को

दुश्मनी तू ही इससे करता है दोस्त रखता हैं एक जहां दिल को

. दिल में सौ अरमान रखता हु प्यारे आखिर मैं जान रखता हूं

आह तेरे भी ध्यान में कुछ हैं इस कदर तेरा ध्यान रखता हूं










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