Munir Niazi: मुनीर नियाज़ी का जीवन परिचय

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Urdu shayari: (Munir Niazi ) मुनीर नियाज़ी पाकिस्तान के बड़े उर्दू शायर ( Urdu shayar) थे। इनका जन्म 19 अप्रैल 1923 को होशियारपुर पंजाब में हुआ था। इनके वालिद का नाम मोहम्मद फतह ख़ान , मुनीर नियाज़ी का असल नाम "मोहम्मद मुनीर ख़ान" था। मुनीर नियाज़ी जब लगभग एक साल के थे तभी इनके पिता का मौत हो गई। पिता के मौत के बाद इनकी देखभाल इनकी मां और चाचाओं ने किया। मुनीर की मां किताबें पढ़ने की बहुत शौकीन थी, वो अक्सर उर्दू साहित्य की किताबें पढ़ती थी, जिससे मुनीर प्रेरित हो उर्दू साहित्य का रुख किया और बचपन से ही शायरी लिखने लगे। मुनीर नियाज़ी अपनी शुरुआती शिक्षा मिंटगुमारी (साहिवाल) से मैट्रिक पास करने के बाद नेवी में मुलाजिम हों गए । लेकिन सख्त अनुशासन की वजह से ये नौकरी इनके मिजाज़ की नही थी। नौकरी करते हुए मुंबई के तटों पर उर्दू शायरी और अदबी दुनियां की चीजे पढ़ते रहते थे। 


मुनीर नियाज़ी 


मुनीर नियाज़ी अक्सर मिराजी के नज्में और सआदत हसन मंटो के अफसाने पढ़ने के शौकीन थे। मुनीर नियाज़ी पढ़ते पढ़ते अदबी दुनियां में पूरी तरह से घुल गए, और इनके जहन में उर्दू शायरी ने एक गहरा असर छोड़ दिया था। जिसके बाद मुनीर नियाज़ी ने नेवी के नौकरी पद से इस्तीफ़ा दे दिया। इसके बाद मुनीर नियाज़ी ने दयाल सिंह कॉलेज से बी.ए किया । 


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इसी बीच भारत और पाकिस्तान का बटवारा होने लगा जिसके बाद मुनीर नियाज़ी अपने परिवार के साथ पाकिस्तान चले गए। और वहां छोटे मोटे काम किए। लेकिन घाटा खाने के बाद सीधा लाहौर चले आए और वहां सात रंग की पत्रिका को जारी किया और साथ ही साथ रेडियो पर भी काम किया। 


सन 1960 में मुनीर नियाज़ी ने फ़िल्मों के लिए गाने लिखने शुरू कर दिया , इन्होंने फ़िल्म "शाहिद" के लिए गाना लिखा जो काफ़ी ज्यादा पॉपुलर हुई।


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मुनीर नियाज़ी अपनी गजलों और शेरों में रूमानी पन का एक नया अंदाज़ भर दिया, जो भी पढ़ता था तो खो जाता था। मुनीर नियाज़ी अपनी शायरी में लोगों का दर्द, इश्क , विरह, और मौजूदा हालात के अक्श को बखूबी उतरने को कोशिश की। 

मुनीर नियाज़ी उर्दू शायरी के एक बड़े शायर माने जाते हैं। इन्होंने उर्दू शायरी को नया मकाम दिया जो लोगों में एक प्रेरणा हैं। इनके इस काम के लिए 1992 में प्राइस ऑफ़ परफॉर्मेंस पुरस्कार ( Prize of Performance Award) और सन 2005 में सितारा ए इम्तियाज़ ( Sitara E Imtiyaz) से नवाजा गया।

मुनीर नियाज़ी शराब पीने के आदि थे मुनीर नियाज़ी शराब अपने शिवा छोड़ कर सबके लिए बुरा कहते थे। ज्यादा शराब पीने से सांस की बीमारी हो गई और 26 दिसंबर 2006 को इस दुनियां को अलविदा कह गए। 


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मुनीर नियाज़ी के गजलें नज्में और शेर 


मुनीर नियाज़ी के मशहूर गजलें!


1. आ गई याद शाम ढलते ही।
बुझ गया दिल चराग़ जलते ही।।

कौन था तू कि फिर न देखा तुझे।
मिट गया ख़्वाब आँख मलते ही।।

खुल गए शहर-ए-ग़म के दरवाज़े।
इक ज़रा सी हवा के चलते ही।।

ख़ौफ़ आता है अपने ही घर से।
माह-ए-शब-ताब के निकलते ही।।

ख़ून सा लग गया है हाथों में।
चढ़ गया ज़हर गुल मसलते ही।।




2. ग़म की बारिश ने भी तेरे नक़्श को धोया नहीं।
तू ने मुझ को खो दिया मैं ने तुझे खोया नहीं।।

नींद का हल्का गुलाबी सा ख़ुमार आँखों में था।
यूँ लगा जैसे वो शब को देर तक सोया नहीं।।

जानता हूँ एक ऐसे शख़्स को मैं भी मुनीर।
ग़म से पत्थर हो गया लेकिन कभी रोया नहीं।।


3. इतने ख़ामोश भी रहा न करो।
ग़म जुदाई में यूँ किया न करो।।

कुछ न होगा गिला भी करने से।
ज़ालिमों से गिला किया न करो।।

अपने रुत्बे का कुछ लिहाज़ मुनीर।
यार सब को बना लिया न करो।।

ख़्वाब होते हैं देखने के लिए।
उन में जा कर मगर रहा न करो।।



मुनीर नियाज़ी के मशहूर नज्में!


       
               " दूरी "

1.अब वो कहाँ है और कैसी है
ये तो कोई बता न सकेगा।
पर कोई उस की नज़रों को
मेरे दिल से मिटा न सकेगा।

दूर ही दूर रही बस मुझ से
पास वो मेरे आ न सकी थी।
लेकिन उस को चाह थी मेरी
वो ये भेद छुपा न सकी थी।

अब वो ख़्वाब में दुल्हन बन कर
मेरे पास चली आती है।
मैं उस को तकता रहता हूँ
लेकिन वो रोती जाती है।


         "हक़ीक़त"

2. न तू हकीकत हैं और न मै 
और न मेरी वफ़ा के किस्से।
न बरखा रुत की सियाह रातों में 
रास्ता भूल कर भटकती हुई नदियों के झुरमुट अगर हकीकत है कुछ तो हवा का झोका जो इब्तिदा ए सफर में हैं 
और जो इंतहा तक सफ़र करेगा।


मुनीर नियाज़ी के मशहूर शेर!


1. किसी को अपने अमाल का हिसाब क्या देते
सवाल सारे गलत थे जवाब क्या देते ।



2. आवाज़ दे के देख लो शायद मिल जाए
वर्ना ये उम्र भर का सफ़र राएगा तो हैं।


3. जनता हु एक ऐसे शख्स को मुनीर
  गम से पत्थर हो गया लेकिन रोया नहीं 


4. ख़्वाब होते है देखने के लिए
उनमें जा कर मगर रहा न करो।


5. आ गई याद शाम ढलते ही
 बुझ गया दिल चराग जलते ही।



मुनीर नियाज़ी का दोहा


1.डूब चला है ज़हर में उस की आँखों का हर रूप।
दीवारों पर फैल रही है फीकी फीकी धूप।।















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