Urdu Poetry : मोहम्मद इब्राहिम ज़ौक का जीवन परिचय और इनके ग़ज़ल शेर पढ़िए.

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Urdu Poetry: मोहम्मद इब्राहिम जौक ( Mohammad Ibrahim Zauq ) 18 वीं सदी में एक दौर था जब उर्दू शायरी (Urdu Poetry) के सबसे बड़े शायर कहे जाते थे जौक। मोहम्मद इब्राहिम ज़ौक का असली नाम "शेख़ इब्राहिम" था। इनका जन्म 1 अगस्त 1790 को हुआ था, इनके पिता का नाम शेख़ मोहम्मद रमजान था। शेख इब्राहीम ज़ौक आखिरी मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र के उस्ताद थे, और मिर्ज़ा गालिब के प्रतिद्वंदी थे, इब्राहिम ज़ौक  मिर्ज़ा ग़ालिब और मोमिन खां मोमिन से बड़े शायर माने जाते थे । ज़ौक जिस भी दरबार में जाते थे ,शेर पढ़ने के लिए वहां के लोग इनके दीवाने हो जाते थे, और इनका लोहा हर कोई मानता था। लेकिन वक्त ने करवट लिया और इन्हे गुमनामी में डाल दिया कुछ लोगो ने तो यहां तक कह दिया की मिर्ज़ा ग़ालिब के साथ इनका नाम तक नहीं लिया जा सकता हैं। आज भले ही मिर्ज़ा गालिब जितना पहचान ना मिल पाई हो लेकिन इनकी शायरी किसी बेहतरीन शायर से कम भी नहीं हैं। इनकी शायरी रूहानियत को एहसास कराती हैं। कहां जाता हैं उर्दू शायरी ( Urdu Poetry) में इब्राहिम ज़ौक का आला मकाम हैं।


(शेख़ इब्राहीम ज़ौक)

शेख़ इब्राहिम ज़ौक 1 नवंबर 1854 को ये दुनियां को छोड़ कर चले गए, और अपने पीछे रूहानित भरे गजलें और शेर छोड़ गए।


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शेख़ इब्राहिम ज़ौक के गजलें.


1.चुपके चुपके ग़म का खाना कोई हम से सीख जाए।
जी ही जी में तिलमिलाना कोई हम से सीख जाए।।

झूट-मूट अफ़यून खाना कोई हम से सीख जाए।
उन को कफ़ ला कर डराना कोई हम से सीख जाए।।

अब्र क्या आँसू बहाना कोई हम से सीख जाए।
बर्क़ क्या है तिलमिलाना कोई हम से सीख जाए।।

तेग़ तो ओछी पड़ी थी गिर पड़े हम आप से।
दिल को क़ातिल के बढ़ाना कोई हम से सीख जाए।।

2. वक़्त-ए-पीरी शबाब की बातें।
ऐसी हैं जैसे ख़्वाब की बातें।।

हर्फ़ आया जो आबरू पे मिरी।
हैं ये चश्म-ए-पुर-आब की बातें।।

मुझ को रुस्वा करेंगी ख़ूब ऐ दिल।
ये तिरी इज़्तिराब की बातें।।

फिर मुझे ले चला उधर देखो।
दिल-ए-ख़ाना-ख़राब की बातें।।

ज़िक्र क्या जोश-ए-इश्क़ में ऐ 'ज़ौक़'।
हम से हों सब्र ओ ताब की बातें।।

3. अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे।
मर के भी चैन न पाया तो किधर जाएँगे।।

आग दोज़ख़ की भी हो जाएगी पानी पानी।
जब ये आसी अरक़-ए-शर्म से तर जाएँगे।।

लाए जो मस्त हैं तुर्बत पे गुलाबी आँखें।
और अगर कुछ नहीं दो फूल तो धर जाएँगे।।

तुम ने ठहराई अगर ग़ैर के घर जाने की।
तो इरादे यहाँ कुछ और ठहर जाएँगे।।

'ज़ौक़' जो मदरसे के बिगड़े हुए हैं मुल्ला।
उन को मय-ख़ाने में ले आओ सँवर जाएँगे।।

 
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शेख़ इब्राहिम ज़ौक के शेर!


1. अब तो घबरा के कहते हैं कि मर जायेंगे 
मर के भी चैन न पाया तो कहां जायेंगे।


2. ज़ाहिद शराब पीने से काफ़िर हुआ मैं क्यों।
क्या डेढ़ चुल्लू पानी में ईमान बह गया।।


3. मालूम जो होता हमें अंजाम-ए-मोहब्बत।
लेते न कभी भूल के हम नाम-ए-मोहब्बत।।


4. तुम भूल कर भी याद नहीं करते कभी।
हम तुम्हारी याद में सबकुछ भुला दिए।।


5. देख छोटों को है अल्लाह बड़ाई देता।
आसमाँ आँख के तिल में है दिखाई देता।।


6. गया शैतान मारा एक सज्दा के न करने में।
अगर लाखों बरस सज्दे में सर मारा तो क्या मारा।।


7. मौत ने कर दिया लाचार वगरना इंसाँ।
है वो ख़ुद-बीं कि ख़ुदा का भी न क़ाइल होता।।













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