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(मंज़र भोपाली का जीवन परिचय , मंजर भोपाली के शेर , मंजर भोपाली के गज़ल , मंजर भोपाली के शायरी)
Manzar Bhopali Shayari: मंजर भोपाली उर्दू अदब (urdu shayari) के महान् शायर हैं, इनका जन्म 29 दिसंबर 1959 को अमरावती बॉम्बे (mumbai) में हुआ था। इनका पूरा नाम सय्यद अली राजा मंज़र भोपाली हैं, इनके पिता मीर अब्बास अली भी उर्दू शायरी ( Urdu poetry) के बेहतरीन शायर थे। मंज़र भोपाली महज़ 17 साल की उम्र में ही पहली ग़ज़ल कहीं, और लोगों के दिल पर एक गहरा छाप छोड़ा। मंज़र भोपाली को "तरन्नुम ए बादशाह" के नाम से भी जाना जाता हैं। मंज़र भोपाली लगभग 4 दशक से उर्दू शायरी की खिदमत में लगे हैं, और आने वाली नस्लों के लिए एक नया पैग़ाम भी अपनी शायरी के ज़रिए दिया हैं।
मंज़र भोपाली अपने शायरी में मोहब्बत, जुल्म, वफा, शिकायत और सरकार के तानाशाही पर अपने लहज़े में नया ग़ज़ल पेश कर के एक पैग़ाम देते हैं। आज की पीढ़ी मंजर भोपाली को सबसे बेहतरीन और मीठे शायर के तौर पर मानती हैं।
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जानिए इनके लिखें मशहूर गजलें।
1. जो चाहें कीजिए कोई सज़ा तो है ही नही
जमान सोच रहा है खुदा तो हैं ही नहीं
दिखा रहें हो नई मंजिलों के ख़्वाब हमें
तुम्हारे पास तो कोई रास्ता हैं ही नहीं
सब आसमा से उतारे हुए फरिश्ते हैं
सियासी लोगों में कोई बुरा तो है ही नही
वो अपने चेहरे के दागों पर क्यों न गुरुर करे
उसके पास तो कोई आईना तो हैं ही नहीं
2. जिंदगी के लिए इतना नही मांगा करते
मांगने वालों से कासा नही मांगा करते।
हमको आता है नई राह बनाने का हुनर
हम पहाड़ों से भी रास्ता नहीं मांगा करते
बेटियों के लिए भी हाथ उठाओ मंज़र
अल्लाह से सिर्फ़ बेटा नही मांगा करते
मैने अल्लाह से बस खाक ए मदीना मांगी
लोग अपने लिए क्या क्या नहीं मांगा करते
3. जिस्म ए यासीन को साए से अलग रखा हैं
नूर को उसने अंधेरे से अलग रखा हैं
एक नुक्ता भी गवारा नहीं अपनी तरह
नाम ए महबूब को नुक्ते से अलग रखा हैं
फांसला इश्क के शिद्दत को बढ़ा देता हैं
इस लिए काबा को मदीने से अलग रखा हैं
5. सितमगरों के सितम की उड़ान कुछ कम है
अभी ज़मीं के लिए आसमान कुछ कम है
हवा- ए- वक़्त ज़रा पैरहन की ख़ैर मना
ये मत समझ कि परिंदों में जान कुछ कम है
जो इस ख़याल को भूले तो मारे जाओगे
कि अपनी सम्त क़यामत का ध्यान कुछ कम है
मंज़र भोपाली के मशहूर शेर
1.बाप बोझ ढोता था क्या दहेज़ दे पता।
इस लिए वो शहजादी आज तक कुंवारी हैं।।
2. आप ही की है अदालत आप ही मुंसिफ़ भी हैं।
ये तो कहिए आप के ऐब- ओ- हुनर देखेगा कौन।।
3. आंख भर आई किसी से जो मुलाकात हुईं।
खुश्क मौसम था मगर टूट के बरसात हुई।।
4. इक मकाँ और बुलंदी पे बनाने न दिया।
हम को पर्वाज़ का मौक़ा ही हवा ने न दिया।।
5. कोई बचने का नहीं सब का पता जानती है।
किस तरफ़ आग लगाना है हवा जानती है।।
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