Dushyant Kumar shayari : दुष्यंत कुमार शायरी / Dushyant Kumar ghazals,biography , poetry

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Dushyant Kumar shayari : प्रिय दोस्तों आज हम आप को इंकलाबी शायर दुष्यंत कुमार { Dushyant Kumar } के बारे में बताने जा रहा हु, जिन्होंने हिंदी ग़ज़ल { Hindi ghazal }की शुरुआत की इनकी लिखी शायरी हर दौर में मशहूर रही हैं. दुष्यंत कुमार {Dushyant Kumar} का जन्म 27 सितंबर 1931 को उत्तर प्रदेश { Uttar Pradesh} के बिजनौर में हुआ था, इनके पिता का नाम भागवत सहाय {Bhagavat Sahay} और माता का नाम रामकिशोरी { Ram Kishori } था, इन्होंने शुरुआती शिक्षा गांव से ही हासिल किया, दसवीं के क्लास से ही कविता लिखना शुरू कर दिया और लगातार लिखते रहे। इन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से हिंदी में बी.ए {B.A} और एम.ए {M.A} किया। दुष्यंत कुमार { Dushyant Kumar} आकाशवाणी में सरकारी नोकरी करने लगे, सरकारी नोकरी में होते हुए भी सरकार के खिलाफ़ लिखते रहें, लोगों पर हो रहे जुल्म को अपने सीने में मशाल बनाकर जलाते रहें.. दुष्यंत कुमार { Dushyant Kumar } की लिखीं गजलें लोगों के लिए एक प्रेरणा हैं, इनका पहला काव्य 1975 में "साए में धूप" प्रकाशित हुआ, जो काफ़ी ज्यादा लोगों में पॉपुलर हुआ, 30 दिसंबर 1975 की रात दुष्यंत कुमार का हार्ट अटैक { Haert Attaik } आ जानें के कारण मौत हो है, महज़ 44 साल की उम्र में ही दुष्यंत कुमार {Dushyant Kumar}ने अपने गजलों और शेरों के जरिए समाज में जीने का नया अलख जगाया..


dushyant Kumar shayari 

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दुष्यंत कुमार की गजलें 


• हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए।।

इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।।


हर सड़क पर हर गली में हर नगर हर गाँव में।।

हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।।


आज ये दीवार पर्दों की तरह हिलने लगी।।

शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।।


सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मिरा मक़्सद नहीं।।

मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।।


मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही।।

हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए।।


Dushayant kumar ki Ghazal 


• ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दोहरा हुआ होगा।।

मैं सज्दे में नहीं था आप को धोका हुआ होगा।।


यहाँ तक आते आते सूख जाती है कई नदियाँ।।

मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा।।


कई फ़ाक़े बिता कर मर गया जो उस के बारे में।।

वो सब कहते हैं अब ऐसा नहीं ऐसा हुआ होगा।।


ग़ज़ब ये है की अपनी मौत की आहट नहीं सुनते।।

वो सब के सब परेशाँ हैं वहाँ पर क्या हुआ होगा।।


यहाँ तो सिर्फ़ गूँगे और बहरे लोग बस्ते हैं।।

ख़ुदा जाने यहाँ पर किस तरह जल्सा हुआ होगा।।


Dushyant Kumar ki Ghazal 

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दुष्यंत कुमार का प्रथम काव्य संग्रह


• मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हूँ।।

वो ग़ज़ल आप को सुनाता हूँ।।


तू किसी रेल सी गुज़रती है।।

मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ।।


एक बाज़ू उखड़ गया जब से।।

और ज़ियादा वज़न उठाता हूँ।।


मैं तुझे भूलने की कोशिश में।।

आज कितने क़रीब पाता हूँ।।


एक जंगल है तेरी आँखों में।।

मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ।।


कौन ये फ़ासला निभाएगा।।

मैं फ़रिश्ता हूँ सच बताता हूँ।


Dushyant Kumar Hindi ghazals 


• मत कहो आकाश में कोहरा घना है।।

ये किसी की व्यक्तिगत आलोचना है।।


इस सड़क पर इस क़दर कीचड़ बिछी है।।

हर किसी का पाँव घुटनों तक सना है।।


रक्त वर्षों से नसों में खौलता है।।

आप कहते हैं क्षणिक उत्तेजना है।।


सूर्य हम ने भी नहीं देखा सुबह से।।

क्या करोगे सूर्य का क्या देखना है।।


हो गई हर घाट पर पूरी व्यवस्था।।

शौक़ से डूबे जिसे भी डूबना है।।


दोस्तो अब मंच पर सुविधा नहीं है।।

आज-कल नेपथ्य में सम्भावना है।।


दुष्यंत कुमार की गजलें


• वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है।।

माथे पे उस के चोट का गहरा निशान है।।


सामान कुछ नहीं है फटे-हाल है मगर।।

झोले में उस के पास कोई संविधान है।।


उस सर-फिरे को यूँ नहीं बहला सकेंगे आप।।

वो आदमी नया है मगर सावधान है।।


देखे हैं हम ने दौर कई अब ख़बर नहीं।।

पावँ तले ज़मीन है या आसमान है।।


वो आदमी मिला था मुझे उस की बात से।।

ऐसा लगा कि वो भी बहुत बे-ज़बान है।।

दुष्यंत कुमार की राजनीतिक चेतना


दुष्यंत कुमार कविता अपनी प्रेमिका से


• रोज़ जब रात को बारह का गजर होता है।।

यातनाओं के अँधेरे में सफ़र होता है।।


कोई रहने की जगह है मिरे सपनों के लिए।।

वो घरौंदा ही सही मिट्टी का भी घर होता है।।


ऐसा लगता है कि उड़ कर भी कहाँ पहुँचेंगे।।

हाथ में जब कोई टूटा हुआ पर होता है।।


सैर के वास्ते सड़कों पे निकल आते थे।।

अब तो आकाश से पथराव का डर होता है।।


सिर से सीने में कभी पेट से पाँव में कभी।।

इक जगह हो तो कहें दर्द इधर होता है।।


दुष्यंत कुमार शायरी 


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इंकलाबी शायरी दुष्यंत कुमार


• हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए।।

इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।। 


आज ये दीवार पर्दों की तरह हिलने लगी।।

शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।।


सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मिरा मक़्सद नहीं।।

मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।


हर सड़क पर हर गली में हर नगर हर गाँव में।।

हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।।


मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही।।

हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए।।


दुष्यंत कुमार 



दुष्यंत कुमार की शायरी 


• तुम्हारे पावँ के नीचे कोई ज़मीन नहीं।।

कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यक़ीन नहीं।।


Tumhare paavn ke niche koi zamin nahi

Kamal hai phir bhi tumhe takin nahi

~Dushyant Kumar 


Dushyant Kumar shayari in Hindi 


ज़िंदगी जब अज़ाब होती है।।

आशिक़ी कामयाब होती है।।


Zinddagi ab azab hoti hai

Aashiki kamyab hoti hai

~Dushyant Kumar 


दुष्यंत कुमार के कविता 


• लहू-लुहान नज़ारों का ज़िक्र आया तो।।

शरीफ़ लोग उठे दूर जा के बैठ गए।।


Lahu luhan nazaron ka zikr aaya to

Sharif log uthe dur ja ke baith gaye

~Dushyant kumaar 


Best of dushyant kumar


दुष्यंत कुमार 


• ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दोहरा हुआ होगा।।

मैं सज्दे में नहीं था आप को धोका हुआ होगा।।


Ye sara jism jhuk kar bojh se dohara hua hoga

Mai sajde me nahi tha aap ko dhokha hua hoga 

~Dushyant Kumar 


Poem by Dushyant Kumar 


• हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए।।

इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।।


Ho gai peer parvat si pighalani chahiye

Is Himalaya se koi ganga nikalni chahiye

~Dushyant Kumar 


दुष्यंत कुमार की गजलें PDF


• वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है।।

माथे पे उस के चोट का गहरा निशान है।।


Vo aadmi nahi hai mukammal bayan hai

Mathe pe us ke chhot ka gahara Nishan hai

~दुष्यंत कुमार 


दुष्यंत कुमार का हिंदी गजल में स्थान


• तू किसी रेल सी गुज़रती है।।

मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ।।


Tu kisi rail si Gujarati hai

Mai kisi pul sa thartharata hu 

~Dushyant Kumar 


दुष्यंत कुमार की साये में धूप


• ये सोच कर के दरख़्तों में छाँव होती है।।

यहाँ बबूल के साए में आ के बैठ गए।।


Ye soch kar ke darakhton me chhonv hoti hai

Yaha babool ke saye me aa ke baith gaye

~Dushyant Kumar 


मोटिवेशनल शायरी ऑफ़ दुष्यंत कुमार


• तिरा निज़ाम है सिल दे ज़बान-ए-शायर को।।

ये एहतियात ज़रूरी है इस बहर के लिए।।


Tira nizam hai sil de juban e Shayar ko 

Ye Ehtimam jaroori hai is bahar ke liye

~Dushyant Kumar 

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