Habib jalib shayari: हबीब जालिब शायरी, गज़ल, जीवनी और इंकलाबी शेर पढ़िए. / Habib jalib

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Habib jalib shayari: प्रिय दोस्तों आज हम आप को एक ऐसे बेहतरीन शायर { Best shayar } के बारे में बताने जा रहा हु जो जब तक जिंदा रहा मजलूम और बेबस के इंसाफ़ के खातिर इंकलाब {Inquilab} करता रहा, अपने इसी तख्ल सख्ती के कारण इन्हें अक्सर जेल में ही रखा जाता था, पाकिस्तान की हर सरकार इनसे खौफ खाती थी। उस शायर का नाम है हबीब जालिब { Habib Jalib} इन्हें दुनियां भर में इनके लिखे इंकलाबी शायरी { Inkalabi shayari } और हुकूमत से बगावत करने के लिए जाना जाता हैं। हबीब जालिब {HABIB JALIB}  का जन्म 24 मार्च 1928 को भारत  के होशियारपुर में हुआ था। इनका असल नाम हबीब अहमद था, हबीब जालिब {Habib jalib } भारत से बहोत मोहब्बत करते थे बटवारे के बाद भी बटवारे को नहीं मानते थे लेकिन परिवार वालों के मोहब्बत के खातिर पाकिस्तान {Pakistan} चले गए, हबीब जालिब {Habib jalib} बचपन से ही इंकलाबी तेवर के थे, इसी को जरिया बना कर गज़ल, नज़्म और शेर लिखने लगे, इनके लिखे शेर लोगों में इंकलाब भड़काने का काम करती थी , जिससे हुकूमत में उथल पुथल शुरू हो जाता था। हबीब जालिब {Habib jalib} अक्सर बेबस, मजदूर, और मजलूमों की लड़ाई सरकार से लड़ते थे, जिसकी वजह से ये सरकार के नजर में चुभते रहते थे, और सरकार इन्हें जेल में डलवा देती थी, हबीब जलीब {habib jalib} अपने जिंदगी के आधे से ज्यादा उम्र जेल में ही कटा। 


Habib jalib shayari 


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उस दौर के बड़े शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ ने हबीब जालिब {Habib jalib} की तारीफ़ करते हुए कहां की " हबीब जलीब वास्तव में जनता के सच्चे शायर हैं" 

हबीब जालिब (Habib jalib) अपने क्रांतिकारी विचार और लेखक के लिए जाने जाते, उर्दू शायरी {Urdu shayari} में हबीब जालिब (Habib jalib) जैसा कोई दूसरा शायर आज तक इस मकान पर नहीं पहुंच सका हैं.. हबीब जालिब (Habib jalib) का ये शेर हर दौर के हुकूमत के खिलाफ़ नाशुर साबित होता है.


तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं था

उस को भी अपने ख़ुदा होने पे इतना ही यक़ीं था।


हबीब जालिब {Habib jalib} भले ही आधी से ज्यादा जिंदगी जेल में गुजारी हो लेकिन इनकी लिखीं शायरी से कई जिंदगी को आजाद किया गया। हबीब जालिब {Habib jalib} 14 मार्च 1993 को पाकिस्तान के लाहौर में इस दुनियां को छोड़कर एक नए दुनियां के लिए रवाना हो गए, और अपने पीछे इंकलाब की बहती धारा छोड़ गए। जो आज तक लोगों के सीने में जिंदा हैं। 


Habib jalib ghazals


• दुश्मनों ने जो दुश्मनी की है।।

दोस्तों ने भी क्या कमी की है।।


मुतमइन है ज़मीर तो अपना।।

बात सारी ज़मीर ही की है।।


ख़ामुशी पर हैं लोग ज़ेर-ए-इताब।।

और हम ने तो बात भी की है।।


अब नज़र में नहीं है एक ही फूल।।

फ़िक्र हम को कली कली की है।।


पा सकेंगे न उम्र भर जिस को।।

जुस्तुजू आज भी उसी की है।।


अपनी तो दास्ताँ है बस इतनी।।

ग़म उठाए हैं शाएरी की है।।


(Habib jalib tum se pahale)

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क्रांतिकारी शेर  / हबीब जलीब / Habib jalib 


• तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं था।।

उस को भी अपने ख़ुदा होने पे इतना ही यक़ीं था।।


आज सोए हैं तह-ए-ख़ाक न जाने यहाँ कितने।।

कोई शोला कोई शबनम कोई महताब-जबीं था।।


कोई ठहरा हो जो लोगों के मुक़ाबिल तो बताओ।।

वो कहाँ हैं कि जिन्हें नाज़ बहुत अपने तईं था।।


छोड़ना घर का हमें याद है जालिब नहीं भूले।।

था वतन ज़ेहन में अपने कोई ज़िंदाँ तो नहीं था।।


इंकलाब जिंदाबाद शायरी 


• शेर से शाइरी से डरते हैं।।

कम-नज़र रौशनी से डरते हैं।।


लोग डरते हैं दुश्मनी से तिरी।।

हम तिरी दोस्ती से डरते हैं।।


हम को ग़ैरों से डर नहीं लगता।।

अपने अहबाब ही से डरते हैं।।


रूठता है तो रूठ जाए जहाँ।।

उन की हम बे-रुख़ी से डरते हैं।।


दावर-ए-हश्र बख़्श दे शायद।।

हाँ मगर मौलवी से डरते हैं।।


हबीब जलीब ग़ज़ल 


• दिल की बात लबों पर ला कर अब तक हम दुख सहते हैं।।

हम ने सुना था इस बस्ती में दिल वाले भी रहते हैं।।


बीत गया सावन का महीना मौसम ने नज़रें बदलीं।।

लेकिन इन प्यासी आँखों से अब तक आँसू बहते हैं।।


जिन की ख़ातिर शहर भी छोड़ा जिन के लिए बदनाम हुए।।

आज वही हम से बेगाने बेगाने से रहते हैं।।


एक हमें आवारा कहना कोई बड़ा इल्ज़ाम नहीं।।

दुनिया वाले दिल वालों को और बहुत कुछ कहते हैं।।


हबीब जालिब शायरी 

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Habib jalib nazm / हबीब जालिब नज़्म 


• ज़ुल्मत को ज़िया सरसर को सबा बंदे को ख़ुदा क्या लिखना

पत्थर को गुहर दीवार को दर कर्गस को हुमा क्या लिखना

इक हश्र बपा है घर में दम घुटता है गुम्बद-ए-बे-दर में

इक शख़्स के हाथों मुद्दत से रुस्वा है वतन दुनिया-भर में

ऐ दीदा-वरो इस ज़िल्लत को क़िस्मत का लिखा क्या लिखना

ज़ुल्मत को ज़िया सरसर को सबा बंदे को ख़ुदा क्या लिखना


लोगों पे ही हम ने जाँ वारी की हम ने ही उन्ही की ग़म-ख़्वारी

होते हैं तो हों ये हाथ क़लम शाएर न बनेंगे दरबारी

इब्लीस-नुमा इंसानों की ऐ दोस्त सना क्या लिखना

ज़ुल्मत को ज़िया सरसर को सबा बंदे को ख़ुदा क्या लिखना


ये अहल-ए-हश्म ये दारा-ओ-जम सब नक़्श बर-आब हैं ऐ हमदम

मिट जाएँगे सब पर्वर्दा-ए-शब ऐ अहल-ए-वफ़ा रह जाएँगे हम

हो जाँ का ज़ियाँ पर क़ातिल को मासूम-अदा क्या लिखना

ज़ुल्मत को ज़िया सरसर को सबा बंदे को ख़ुदा क्या लिखना।।


हर शाम यहाँ शाम-ए-वीराँ आसेब-ज़दा रस्ते गलियाँ

जिस शहर की धुन में निकले थे वो शहर दिल-ए-बर्बाद कहाँ

सहरा को चमन बन कर गुलशन बादल को रिदा क्या लिखना।।

ज़ुल्मत को ज़िया सरसर को सबा बंदे को ख़ुदा क्या लिखना।।


ऐ मेरे वतन के फ़नकारो ज़ुल्मत पे न अपना फ़न वारो

ये महल-सराओं के बासी क़ातिल हैं सभी अपने यारो

विर्से में हमें ये ग़म है मिला इस ग़म को नया क्या लिखना।।

ज़ुल्मत को ज़िया सरसर को सबा बंदे को ख़ुदा क्या लिखना।


क्रांतिकारी नज़्म


हबीब जालिब मैं नहीं मानता


Habib jalib 

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• दीप जिस का महल्लात ही में जले

चंद लोगों की ख़ुशियों को ले कर चले

वो जो साए में हर मस्लहत के पले

ऐसे दस्तूर को सुब्ह-ए-बे-नूर को

मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता।,


फूल शाख़ों पे खिलने लगे तुम कहो

जाम रिंदों को मिलने लगे तुम कहो

चाक सीनों के सिलने लगे तुम कहो

इस खुले झूट को ज़ेहन की लूट को

मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता।।


तुम ने लूटा है सदियों हमारा सुकूँ

अब न हम पर चलेगा तुम्हारा फ़ुसूँ

चारागर दर्दमंदों के बनते हो क्यूँ

तुम नहीं चारागर कोई माने मगर

मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता।।


मैं भी ख़ाइफ़ नहीं तख़्ता-ए-दार से

मैं भी मंसूर हूँ कह दो अग़्यार से

क्यूँ डराते हो ज़िंदाँ की दीवार से

ज़ुल्म की बात को जहल की रात को

मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता।।


Habib jalib 

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हबीब जालिब के शेर 


• लोग डरते हैं दुश्मनी से तिरी।।

हम तिरी दोस्ती से डरते हैं।।


Log darte hai dushmi se teri

Ham tiri dosti se darte hai

~Habib jalib 


निकम्मी सरकार पर कविता


• दुश्मनों ने जो दुश्मनी की है।।

दोस्तों ने भी क्या कमी की है।।


Dushmano ne jo dushmni ki hai

Dosto ne bhi kya kami ki hai

~Habib jalib 


तुमसे पहले जो शख्स


• तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं था।।

उस को भी अपने ख़ुदा होने पे इतना ही यक़ीं था।।


Tum se pahle vo jo ek shakhs yaha takht nashi tha

Us ko bhi apne khuda hone pe itna hi yaki tha

~Habib jalib 


Habib jalib shayari 


• दुनिया तो चाहती है यूँही फ़ासले रहें।।

दुनिया के मश्वरों पे न जा उस गली में चल।।


Duniya to chahati hai yunhi fasle rahe

Duniya ke mashvaron pe na ja us gali me chal

~Habib jalib 


Dastoor habib jalib 


• उस सितमगर की हक़ीक़त हम पे ज़ाहिर हो गई। 

ख़त्म ख़ुश-फ़हमी की मंज़िल का सफ़र भी हो गया।।


Us sitamgar ki haqiqat ham pe jahir ho gai

Khatm khush fahami ki manjil ka Safar bhi ho gaya

~Habib jalib


Habib jalib poetry 


• हुक्मरा हो गए कमीनें लोग।।

ख़ाक में मिल गए नगीने लोग।।


Hukmra ho gaye kamine log

Khak me mil gaye nagine log

~Habib jalib


हबीब जालिब शायरी 


• इक तिरी याद से इक तेरे तसव्वुर से हमें।।

आ गए याद कई नाम हसीनाओं के।।


Ek Teri yaad se ek teri tasawwur se hame

Aa gaye yaad kai naam haseenaon ke

~Habib jalib 

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