Saadat Hasan manto : सआदत हसन मंटो के कहें गए 11 बड़ी बाते जानिए

Saadat Hasan Manto :  सआदत हसन मंटो (Saadat Hasan Manto) एक उर्दू भाषा के लेखक, स्क्रीन राइटर और फ़िल्म निर्देशक थे। वह जन्म 11 मई 1912 को बॉम्बे (अब मुंबई) में हुआ था और उनकी मृत्यु 18 जनवरी 1955 को हुई थी।


मंटो उर्दू साहित्य में अपनी विशिष्ट शैली के लिए जाने जाते हैं जो सत्य की उन्नति के लिए अपने काम में व्यंग्य, समाज की दुर्गति और न्याय के प्रति आंदोलन का समर्थन करते थे। उनकी कहानियां आम आदमी की ज़िंदगी को रचनात्मक ढंग से व्यक्त करती हैं और वे उस समय की वास्तविकता को बताने में अपने वाक्यों के जोर का इस्तेमाल करते हैं। 

उनकी लोकप्रिय कहानियों में से कुछ शीर्षक हैं: "तोबा टेक सिंह", "बू", "थंडा गोश", "काली शलवार", "इंसानी अख़लाक़", और "खाली बोतलें"।


आइए जानते हैं सआदत हसन मंटो के 11 बड़ी बाते।


Saadat Hasan Manto 


सआदत हसन मंटो के विचार 


1. लीडर जब आँसू बहा कर लोगों से कहते हैं कि मज़हब ख़तरे में है तो इस में कोई हक़ीक़त नहीं होती। मज़हब ऐसी चीज़ ही नहीं कि ख़तरे में पड़ सके, अगर किसी बात का ख़तरा है तो वो लीडरों का जो अपना उल्लू सीधा करने के लिए मज़हब को ख़तरे में डालते हैं।



2. पहले मज़हब सीनों में होता था आजकल टोपियों में होता है। सियासत भी अब टोपियों में चली आई है। ज़िंदाबाद टोपियाँ।


Saadat Hasan Manto quote


3. आप शहर में ख़ूबसूरत और नफ़ीस गाड़ियाँ देखते हैं... ये ख़ूबसूरत और नफ़ीस गाड़ियाँ कूड़ा करकट उठाने के काम नहीं आ सकतीं। गंदगी और ग़लाज़त उठा कर बाहर फेंकने के लिए और गाड़ियाँ मौजूद हैं जिन्हें आप कम देखते हैं और अगर देखते हैं तो फ़ौरन अपनी नाक पर रूमाल रख लेते हैं... इन गाड़ियों का वुजूद ज़रूरी है और उन औरतों का वुजूद भी ज़रूरी है जो आपकी ग़लाज़त उठाती हैं। अगर ये औरतें ना होतीं तो हमारे सब गली कूचे मर्दों की ग़लीज़ हरकात से भरे होते।




4. हिन्दुस्तान को उन लीडरों से बचाओ जो मुल्क की फ़िज़ा बिगाड़ रहे हैं और अवाम को गुमराह कर रहे हैं।


मंटो के विचार 


5. हर औरत वेश्या नहीं होती लेकिन हर वेश्या औरत होती है। इस बात को हमेशा याद रखना चाहिए।


Manto ke vichar 


6. वेश्या पैदा नहीं होती, बनाई जाती है। या ख़ुद बनती है। जिस चीज़ की मांग होगी मंडी में ज़रूर आएगी। मर्द की नफ़सानी ख़्वाहिशात की मांग औरत है। ख़्वाह वो किसी शक्ल में हो। चुनांचे इस मांग का असर ये है कि हर शहर में कोई ना कोई चकला मौजूद है। अगर आज ये मांग दूर हो जाये तो ये चकले ख़ुद बख़ुद ग़ायब हो जाऐंगे।



7. आदमी या तो आदमी है वर्ना आदमी नहीं है, गधा है, मकान है, मेज़ है, या और कोई चीज़ है।


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8. मैं सोचता हूँ अगर बंदर से इन्सान बन कर हम इतनी क़यामतें ढा सकते हैं, इस क़दर फ़ित्ने बरपा कर सकते हैं तो वापिस बंदर बन कर हम ख़ुदा मालूम क्या कुछ कर सकते हैं?



9. इन्सान अपने अंदर कोई बुराई लेकर पैदा नहीं होता। खूबियाँ और बुराईयाँ उस के दिल-ओ-दिमाग़ में बाहर से दाख़िल होती हैं। बाअज़ उनकी परवरिश करते हैं, बाअज़ नहीं करते।



10. दुनिया में जितनी लानतें हैं, भूक उनकी माँ है।



11. भूक किसी क़िस्म की भी हो, बहुत ख़तरनाक है... आज़ादी के भूकों को अगर गु़लामी की ज़ंजीरें ही पेश की जाती रहीं तो इन्क़िलाब ज़रूर बरपा होगा... रोटी के भूके अगर फ़ाक़े ही खींचते रहे तो वो तंग आकर दूसरे का निवाला ज़रूर छीनेंगे... मर्द की नज़रों को अगर औरत के दीदार का भूका रखा गया तो शायद वो अपने हम-जिंसों और हैवानों ही में उस का अक्स देखने की कोशिश करें।


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