Dagh dehlvi : दाग देलहवी : प्रिय दोस्तो आज हम उर्दू अदब के एक इसे शायर के बारे में बताने वाले हैं, जिन्हे कई सदी के कई बड़े शायरों के उस्ताद कहां जाता हैं। दाग देलहवी (Dagh dehlvi)का असली नाम नवाब मिर्ज़ा ख़ान था इनका जन्म 25 मई 1831 को दिल्ली में हुआ था। इनके वालिद का नाम नवाब शमशुद्दीन था। जब देलहवी 4 साल के थे तो इनके वालिद को विलियम फ्रेजर ( William freezer ) के हत्या के आरोप में फांसी दे दिया गया था।
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Dagh dehlvi |
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दाग देलहवी (dagh dehlvi) ने 15 वर्ष में ही अपने खाला के बेटी से शादी कर लिया था। उसके बाद इनको लाल किला में पढ़ाई और रहने की व्यवस्था की गई , वही पर इनकी मुलाकात शायर शेख़ इब्राहिम जौक { Shekh Ibrahim zauk} से होती है और ये उनको उस्ताद मान लेते है। और उनसे ही शुरआती शायरी सीखी और शेर कहने लगे।
दाग देलहवी पत्थर के हुस्न के भी दीवाने होने लगे.
लाल क़िला में इनकी जिंदगी आराम से गुजरने लगी तो इनके अंदर यौन इच्छाएं जागने लगी, और इसकी पूर्ति के लिए दाग देलहवी ने तवायफों से संबंध बनाने लगे धीरे धीरे दाग को माहौल ने हुस्न परस्त और बदकार बना दिया। वो खूबसूरत चेहरे के दीवाने होने लगे । चाहे वो खूबसूरती पत्थर में ही क्यों ना हों .. दाग एक शेर में फरमाते हैं की .. “बुत ही पत्थर के क्यों ना हो ये दाग अच्छी सूरत को देखता हु मै”
दुनियां भर में दाग के हजारों शागिर्द हुए.।
14 साल लाल किला में रहने के बाद हैदराबाद में आकर बस गए । दाग ने हजारों गजलें और शेर कहें। दुनियां भर में इनकी लोकप्रियता बढ़ने लगीं। लोग इनके शागिर्द बनने लगे . अल्लामा इक़बाल, जिगर मुरादाबादी , नूर नरहवी, बेखुद देलहवी और हसन बरेलवी जैसे शायर इनके शागिर्द थे।
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दाग देहलवी के गजलें
• इन आँखों ने क्या क्या तमाशा न देखा।।
हक़ीक़त में जो देखना था न देखा।।
तुझे देख कर वो दुई उठ गई है।।
कि अपना भी सानी न देखा न देखा।।
उन आँखों के क़ुर्बान जाऊँ जिन्हों ने।।
हज़ारों हिजाबों में परवाना देखा।।
वो कब देख सकता है उस की तजल्ली।।
जिस इंसान ने अपना ही जल्वा न देखा।।
बहुत शोर सुनते थे इस अंजुमन का।।
यहाँ आ के जो कुछ सुना था न देखा।।
वो था जल्वा-आरा मगर तू ने मूसा।।
न देखा न देखा न देखा न देखा।।
तिरी याद है या है तेरा तसव्वुर।।
कभी दाग़ को हम ने तन्हा न देखा।।
Dagh dehlvi ghazals
• आरज़ू है वफ़ा करे कोई
जी न चाहे तो क्या करे कोई
गर मरज़ हो दवा करे कोई
मरने वाले का क्या करे कोई
उन से सब अपनी अपनी कहते हैं
मेरा मतलब अदा करे कोई
उस गिले को गिला नहीं कहते
गर मज़े का गिला करे कोई
तुम सरापा हो सूरत-ए-तस्वीर
तुम से फिर बात क्या करे कोई
कोसते हैं जले हुए क्या क्या
अपने हक़ में दुआ करे कोई
जिस में लाखों बरस की हूरें हों
ऐसी जन्नत को क्या करे कोई
इस जफ़ा पर तुम्हें तमन्ना है
कि मिरी इल्तिजा करे कोई
• ग़ज़ब किया तिरे वादे पे एतिबार किया।।
तमाम रात क़यामत का इंतिज़ार किया।।
किसी तरह जो न उस बुत ने एतिबार किया।।
मिरी वफ़ा ने मुझे ख़ूब शर्मसार किया।।
हँसा हँसा के शब-ए-वस्ल अश्क-बार किया।।
तसल्लियाँ मुझे दे दे के बे-क़रार किया।।
दाग़ देहलवी २ लाइन शायरी
• उर्दू है जिस का नाम हमीं जानते हैं दाग़।।
हिन्दोस्ताँ में धूम हमारी ज़बाँ की है।।
• तुम्हारा दिल मिरे दिल के बराबर हो नहीं सकता।।
वो शीशा हो नहीं सकता ये पत्थर हो नहीं सकता।।
दाग के शेर
• हज़ारों काम मोहब्बत में हैं मज़े के दाग़
जो लोग कुछ नहीं करते कमाल करते हैं
• वफ़ा करेंगे निबाहेंगे बात मानेंगे
तुम्हें भी याद है कुछ ये कलाम किस का था
• मिलाते हो उसी को ख़ाक में जो दिल से मिलता है।।
मिरी जाँ चाहने वाला बड़ी मुश्किल से मिलता है।।
• आइना देख के कहते हैं सँवरने वाले।।
आज बे-मौत मरेंगे मिरे मरने वाले।।
• हमें है शौक़ कि बे-पर्दा तुम को देखेंगे।।
तुम्हें है शर्म तो आँखों पे हाथ धर लेना।।
• सब लोग जिधर वो हैं उधर देख रहे हैं।।
हम देखने वालों की नज़र देख रहे हैं।।
• लिपट जाते हैं वो बिजली के डर से।।
इलाही ये घटा दो दिन तो बरसे।।
• ले चला जान मिरी रूठ के जाना तेरा।।
ऐसे आने से तो बेहतर था न आना तेरा।।
• ये तो नहीं कि तुम सा जहाँ में हसीं नहीं।।
इस दिल को क्या करूँ ये बहलता कहीं नहीं।।
• आओ मिल जाओ कि ये वक़्त न पाओगे कभी।।
मैं भी हम-राह ज़माने के बदल जाऊँगा।।
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