Umair najmi shayari : उमैर नज्मी के मशहूर गजलें और शेर पढ़िए..

Umair Najmi : उर्दू अदब के मशहूर पाकिस्तानी शायर उमैर नज्मी के बारे में आज जानेंगे उनके बेहतरीन शायरी, दोस्तों उमैर नज़मी { Umair najmi } आज के दौर के बेहतरीन शायर माने जाते हैं उनके लिखे शेर न सिर्फ़ पाकिस्तान में बल्कि हिंदुस्तान में भी काफ़ी ज्यादा पॉपुलर हैं, उमैर नज्मी अब तक दुबई समेत कई सारे देशों में अपने शेर पढ़ चुके हैं। आइए जानते है उमैर नज्मी ( Umair nazmi ) के मशहूर गजलें और शेर। 



Umair najmi 





उमैर नज्मी के गजलें / Uamir najmi Ghazals



• बिछड़ गए तो ये दिल उम्र भर लगेगा नहीं

लगेगा लगने लगा है मगर लगेगा नहीं


हमारे दिल को अभी मुस्तक़िल पता न बना

हमें पता है तिरा दिल उधर लगेगा नहीं


नहीं लगेगा उसे देख कर मगर ख़ुश है

मैं ख़ुश नहीं हूँ मगर देख कर लगेगा नहीं


इक ऐसा ज़ख़्म-नुमा दिल क़रीब से गुज़रा

दिल उस को देख के चीख़ा ठहर लगेगा नहीं


जुनूँ का हज्म ज़्यादा तुम्हारा ज़र्फ़ है कम।

ज़रा सा गमला है इस में शजर लगेगा नहीं


बहुत तवज्जोह तअल्लुक़ बिगाड़ देती है

ज़ियादा डरने लगेंगे तो डर लगेगा नहीं




• बड़े तहम्मुल से रफ़्ता रफ़्ता निकालना है

बचा है जो तुझ में मेरा हिस्सा निकालना है


नज़र में रखना कहीं कोई ग़म-शनास गाहक

मुझे सुख़न बेचना है ख़र्चा निकालना है


ये रूह बरसों से दफ़्न है तुम मदद करोगे

बदन के मलबे से इस को ज़िंदा निकालना है


ये तीस बरसों से कुछ बरस पीछे चल रही है

मुझे घड़ी का ख़राब पुर्ज़ा निकालना है


निकाल लाया हूँ एक पिंजरे से इक परिंदा

अब इस परिंदे के दिल से पिंजरा निकालना है


मैं एक किरदार से बड़ा तंग हूँ क़लमकार

मुझे कहानी में डाल ग़ुस्सा निकालना है


ख़याल है ख़ानदान को इत्तिलाअ दे दूँ

जो कट गया उस शजर का शजरा निकालना है



• एक तारीख़ मुक़र्रर पे तो हर माह मिले

जैसे दफ़्तर में किसी शख़्स को तनख़्वाह मिले


जम्अ थे रात मिरे घर तिरे ठुकराए हुए

एक दरगाह पे सब रांदा-ए-दरगाह मिले


मैं तो इक आम सिपाही था हिफ़ाज़त के लिए

शाह-ज़ादी ये तिरा हक़ था तुझे शाह मिले


इक मुलाक़ात के टलने की ख़बर ऐसे लगी

जैसे मज़दूर को हड़ताल की अफ़्वाह मिले


रंग उखड़ जाए तो ज़ाहिर हो प्लस्तर की नमी

क़हक़हा खोद के देखो तो तुम्हें आह मिले


घर पहुँचने की न जल्दी न तमन्ना है कोई

जिस ने मिलना हो मुझे आए सर-ए-राह मिले




• मुझे पहले तो लगता था कि ज़ाती मसअला है

मैं फिर समझा मोहब्बत काएनाती मसअला है


हमें थोड़ा जुनूँ दरकार है थोड़ा सुकूँ भी

हमारी नस्ल में इक जीनियाती मसअला है


परिंदे क़ैद हैं तुम चहचहाहट चाहते हो

तुम्हें तो अच्छा-ख़ासा नफ़सियाती मसअला है


वो कहते हैं कि जो होगा वो आगे जा के होगा

तो ये दुनिया भी कोई तजरबाती मसअला है


हमारा वस्ल भी था इत्तिफ़ाक़ी मसअला था

हमारा हिज्र भी है हादसाती मसअला है





उमैर नज़मी शायरी / umair najmi shayari 



• बिछड़ गए तो ये दिल उम्र भर लगेगा नहीं।।

लगेगा लगने लगा है मगर लगेगा नहीं।।



• उस की तह से कभी दरयाफ़्त किया जाऊँगा मैं।।

जिस समुंदर में ये सैलाब इकट्ठे होंगे।।



Umair najmi poetry 



• निकाल लाया हूँ एक पिंजरे से इक परिंदा।।

अब इस परिंदे के दिल से पिंजरा निकालना है।।



• मैं बाल बाल बच गया हर बार इश्क़ से।।

सर के बहुत क़रीब से पत्थर गुज़र गए ।।



• किसी गली में किराए पे घर लिया उसने।।

फिर उस गली में घरों के किराए बढ़ने लगे।। 



• तुमने छोड़ा तो किसी और से टकराऊँगा मैं ।।

कैसे मुमकिन है कि अंधे का कहीं सर न लगे।।



• मैं एक किरदार से बड़ा तंग हूँ क़लमकार ।।

मुझे कहानी में डाल ग़ुस्सा निकालना हैं।।



• मेरा हाथ पकड़ ले पागल, जंगल है।।

जितना भी रौशन हो जंगल, जंगल है।।


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