Amir Ameer shayari : प्रिय दोस्तों आज हम आपको को एक ऐसे नौज़वान शायर के बारे में बताने जा रहा हु, जिसके शायरी में मोहब्बत का दिल धड़कता हैं, इनके लिखे कलाम में लोग अपनी मोहब्बत का कल देखते हैं, हम बात कर रहे है पाकिस्तान के मशहूर शायर आमिर अमीर कि, लिखी गजलें हिंदुस्तान और पाकिस्तान समेत कई देशों में मशहूर हैं.. इनकी लिखी सबसे मशहूर ग़ज़ल.. अगर ये कह दो बगैर मेरे नहीं गुजरा तो मैं तुम्हारा.. सबसे ज्यादा पढ़ी जानें वाली गज़ल हैं।
आइए जानते है इनके मशहूर गजलें और शेर..
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• अगर ये कह दो बग़ैर मेरे नहीं गुज़ारा तो मैं तुम्हारा
या उस पे मब्नी कोई तअस्सुर कोई इशारा तो मैं तुम्हारा
ग़ुरूर-परवर अना का मालिक कुछ इस तरह के हैं नाम मेरे
मगर क़सम से जो तुम ने इक नाम भी पुकारा तो मैं तुम्हारा
तुम्हारा आशिक़ तुम्हारा मुख़्लिस तुम्हारा साथी तुम्हारा अपना
रहा न इन में से कोई दुनिया में जब तुम्हारा तो मैं तुम्हारा
तुम अपनी शर्तों पे खेल खेलो मैं जैसे चाहे लगाऊँ बाज़ी
अगर मैं जीता तो तुम हो मेरे अगर मैं हारा तो मैं तुम्हारा
तुम्हारा होने के फ़ैसले को मैं अपनी क़िस्मत पे छोड़ता हूँ
अगर मुक़द्दर का कोई टूटा कभी सितारा तो मैं तुम्हारा
ये किस पे तावीज़ कर रहे हो ये किस को पाने के हैं वज़ीफ़े
तमाम छोड़ो बस एक कर लो जो इस्तिख़ारा तो मैं तुम्हारा
• तुझ को अपना के भी अपना नहीं होने देना।
ज़ख़्म-ए-दिल को कभी अच्छा नहीं होने देना।।
मैं तो दुश्मन को भी मुश्किल में कुमक भेजूँगा।
इतनी जल्दी उसे पसपा नहीं होने देना।।
तू ने मेरा नहीं होना है तो फिर याद रहे।
मैं ने तुझ को भी किसी का नहीं होने देना।।
तू ने कितनों को नचाया है इशारों पे मगर।
मैं ने ऐ इश्क़! ये मुजरा नहीं होने देना।।
उस ने खाई है क़सम फिर से मुझे भूलने की।
मैं ने इस बार भी ऐसा नहीं होने देना।।
ज़िंदगी में तो तुझे छोड़ ही देता लेकिन।
फिर ये सोचा तुझे बेवा नहीं होने देना।।
मज़हब-ए-इश्क़ कोई छोड़ मरे तो मैं ने।
ऐसे मुर्तद का जनाज़ा नहीं होने देना।।
• हुस्न तेरा ग़ुरूर मेरा था।
सच तो ये है क़ुसूर मेरा था।।
रात यूँ तेरे ख़्वाब से गुज़रा।
कि बदन चूर चूर मेरा था।।
आइने में जमाल था तेरा।
तेरे चेहरे पे नूर मेरा था।।
आँख की हर ज़बान पर कल तक।
बोलने में उबूर मेरा था।।
उस की बातों में नाम मेरा न था।
ज़िक्र बैनस्सुतूर मेरा था।।
• ज़रूर उस की नज़र मुझ पे ही गड़ी हुई है ।
मैं जिम से आ रहा हूँ आस्तीं चढ़ी हुई है।।
मुझे ज़रा सा बुरा कह दिया तो इस से क्या ।।
वो इतनी बात पे माँ बाप से लड़ी हुई है ।।
उसे ज़रूरत-ए-पर्दा ज़रा ज़ियादा है ।।
ये वो भी जानती है जब से वो बड़ी हुई है।।
वो मेरी दी हुई नथुनी पहन के घूमती है ।।
तभी वो इन दिनों कुछ और नक-चढ़ी हुई है ।।
मुआहिदों में लचक भी ज़रूरी होती है।
पर इस की सूई वहीं की वहीं अड़ी हुई है।।
वो टाई बाँधती है और खींच लेती है ।
ये कैसे वक़्त उसे प्यार की पड़ी हुई है ।।
ख़ुदा के वास्ते लिखते रहो कि उस ने आमीर।
हर इक ग़ज़ल तिरी सौ सौ दफ़ा पढ़ी हुई है ।।
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