Parveen Shakir shayari: पढ़िए परवीन शाकिर के जन्मदिन पर उनके ख़ास शायरी..

Parveen Shakir shayari : दोस्तों आज के लेख में मकबूल पाकिस्तानी शायरा परवीन शाकिर के चुनिंदा गजलें और शेर के बारे में बताएंगे। परवीन शाकिर उर्दू अदब की ताज़ा बयान शायरा थी, जिनके शेर में दर्द, बेवफ़ाई, तन्हाई, रुशवाई, मोहब्बत, मुलाकात, तकाज़ा, शिद्दत, और मोहब्बत को समझने का एक शानदार अदब देखने को मिलता है, इनकी शायरी हिंदुस्तान और पाकिस्तान के साथ साथ कई मुल्कों में भी फेमस हैं। दोस्तों इस मशहूर शायरा का जन्म आज ही के दिन 24 नवंबर 1952 को पाकिस्तान के कराची में हुआ था। परवीन शाकिर की शख्सियत का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है की, अधूरी शादी के कुछ साल बाद इन्होंने ने सिविल की परीक्षा पास की और कलेक्टर के पद पर नियुक्त हुई, नौकरी में रहते हुए, शायरी का शौक़ और परवान चढ़ने लगा। परवीन शाकिर ने एक के बाद एक कई दीवान लिख कर धूम मचा दिया, इनके शेर लोगो के जुबां पर चढ़ने लगा, और आज के दौर में इनका शेर अमर हो गया है। परवीन शाकिर लड़कियों के दर्द और उनके ख्वाहिश के बारे में बखूबी अपने शायरी में उतारा हैं। 


परवीन शाकिर शायरी 



आइए जानते हैं इनके कुछ गज़ल और शेर।


• बिछड़ा है जो इक बार तो मिलते नहीं देखा

इस ज़ख़्म को हम ने कभी सिलते नहीं देखा


काँटों में घिरे फूल को चूम आएगी लेकिन

तितली के परों को कभी छिलते नहीं देखा


यक-लख़्त गिरा है तो जड़ें तक निकल आईं

जिस पेड़ को आँधी में भी हिलते नहीं देखा


इक बार जिसे चाट गई धूप की ख़्वाहिश

फिर शाख़ पे उस फूल को खिलते नहीं देखा



• चारासाज़ों की अज़िय्यत नहीं देखी जाती

तेरे बीमार की हालत नहीं देखी जाती


देने वाले की मशिय्यत पे है सब कुछ मौक़ूफ़

माँगने वाले की हाजत नहीं देखी जाती


कौन उतरा है ये आफ़ाक़ की पहनाई में

आइना-ख़ाने की हैरत नहीं देखी जाती


तमकनत से तुझे रुख़्सत तो किया है लेकिन

हम से इन आँखों की हसरत नहीं देखी जाती


दिन बहल जाता है लेकिन तिरे दीवानों की

शाम होती है तो वहशत नहीं देखी जाती



किस तरह मिरी रूह हरी कर गया आख़िर

वो ज़हर जिसे जिस्म में खिलते नहीं देखा



• अश्क आँख में फिर अटक रहा है

कंकर सा कोई खटक रहा है


मैं उस के ख़याल से गुरेज़ाँ

वो मेरी सदा झटक रहा है


हैं फ़ोन पे किस के साथ बातें

और ज़ेहन कहाँ भटक रहा है


तहरीर उसी की है मगर दिल

ख़त पढ़ते हुए अटक रहा है


सदियों से सफ़र में है समुंदर

साहिल पे थकन टपक रहा है



• वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा

मसअला फूल का है फूल किधर जाएगा


वो हवाओं की तरह ख़ाना-ब-जाँ फिरता है

एक झोंका है जो आएगा गुज़र जाएगा


आख़िरश वो भी कहीं रेत पे बैठी होगी

तेरा ये प्यार भी दरिया है उतर जाएगा


हम तो समझे थे कि इक ज़ख़्म है भर जाएगा

क्या ख़बर थी कि रग-ए-जाँ में उतर जाएगा


वो जब आएगा तो फिर उस की रिफ़ाक़त के लिए

मौसम-ए-गुल मिरे आँगन में ठहर जाएगा


परवीन शाकिर के शेर..


• हुस्न के समझने को उम्र चाहिए जानाँ

दो घड़ी की चाहत में लड़कियाँ नहीं खुलतीं

~परवीन शाकिर


• मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाऊँगी

वो झूट बोलेगा और ला-जवाब कर देगा

~परवीन शाकिर



• वो न आएगा हमें मालूम था इस शाम भी

इंतिज़ार उस का मगर कुछ सोच कर करते रहे

~परवीन शाकिर


• वो मुझ को छोड़ के जिस आदमी के पास गया

बराबरी का भी होता तो सब्र आ जाता

~परवीन शाकिर 



• जिस तरह ख़्वाब मिरे हो गए रेज़ा रेज़ा

उस तरह से न कभी टूट के बिखरे कोई

~परवीन शाकिर  


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