John Elia : जॉन एलिया शायरी, ग़ज़ल और जीवनी पढ़िए

John Elia : जॉन एलिया (John Elia) एक उर्दू शायर ( urdu shayar ) और लेखक थे। वह 14 जनवरी 1931 को अमरोहा, भारत में पैदा हुए थे। उनके असली नाम सय्यद हुसैन जॉन असगर था, लेकिन उन्होंने जॉन एलिया के नाम से अपनी पहचान बनाई।

जॉन एलिया John Elia की कविताओं और ग़ज़लों में समाज, राजनीति और प्यार-इश्क़ के मुद्दों पर अद्भुत रूप से व्यंग्य भरी टिप्पणियां होती हैं। उनके शब्दों में गहराई और भावनाओं का संगम होता है।

जॉन एलिया { John Elia } ने अपनी रचनाओं के लिए अनेक सम्मान प्राप्त किए थे, जैसे कि साहित्य अकादमी पुरस्कार, पद्म श्री, ज्ञानपीठ पुरस्कार आदि। उनकी मृत्यु 8 नवंबर 2002 को हुई थी। 


John elia 


     Jaun Elia ghazal 


• इक हुनर है जो कर गया हूँ मैं।।

सब के दिल से उतर गया हूँ मैं।।


कैसे अपनी हँसी को ज़ब्त करूँ।।

सुन रहा हूँ कि घर गया हूँ मैं।।


अब है बस अपना सामना दर-पेश।।

हर किसी से गुज़र गया हूँ मैं।।


कभी ख़ुद तक पहुँच नहीं पाया।।

जब कि वाँ उम्र भर गया हूँ मैं।।


तुम से जानाँ मिला हूँ जिस दिन से।।

बे-तरह ख़ुद से डर गया हूँ मैं।।


  John Elia Urdu Poetry 2 lines


• बहुत दिल को कुशादा कर लिया क्या।।

ज़माने भर से वा'दा कर लिया क्या।।


हुनर-मंदी से अपनी दिल का सफ़्हा।।

मिरी जाँ तुम ने सादा कर लिया क्या।।


तो क्या सच-मुच जुदाई मुझ से कर ली।।

तो ख़ुद अपने को आधा कर लिया क्या।।


उठाया इक क़दम तू ने न उस तक।।

बहुत अपने को माँदा कर लिया क्या।।


तुम अपनी कज-कुलाही हार बैठीं।।

बदन को बे-लिबादा कर लिया क्या।।


बहुत नज़दीक आती जा रही हो।।

बिछड़ने का इरादा कर लिया क्या।।

  Jaun Elia Shayari


• अपना ख़ाका लगता हूँ।।

एक तमाशा लगता हूँ।।


आईनों को ज़ंग लगा।।

अब मैं कैसा लगता हूँ।।


अब मैं कोई शख़्स नहीं।।

उस का साया लगता हूँ।।


उस से गले मिल कर ख़ुद को।।

तन्हा तन्हा लगता हूँ।।


सारे रिश्ते तिश्ना हैं।।

क्या मैं दरिया लगता हूँ।।


मैं हर लम्हा इस घर से।।

जाने वाला लगता हूँ।।


ख़ुद को मैं सब आँखों में।।

धुँदला धुँदला लगता हूँ।।


मस्लहत इस में क्या है मेरी।।

टूटा फूटा लगता हूँ।।


क्या तुम को इस हाल में भी।।

मैं दुनिया का लगता हूँ।।


मुझ से कमा लो कुछ पैसे।।

ज़िंदा मुर्दा लगता हूँ।।


मैं ने सहे हैं मक्र अपने ।।

अब बेचारा लगता हूँ।।

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• नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम।।

बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूँ करें हम।।


ये काफ़ी है कि हम दुश्मन नहीं हैं।।

वफ़ा-दारी का दावा क्यूँ करें हम।।


ख़मोशी से अदा हो रस्म-ए-दूरी।।

कोई हंगामा बरपा क्यूँ करें हम।।


हमारी ही तमन्ना क्यूँ करो तुम।।

तुम्हारी ही तमन्ना क्यूँ करें हम।।


किया था अहद जब लम्हों में हम ने।।

तो सारी उम्र ईफ़ा क्यूँ करें हम।।


उठा कर क्यों न फेंकें सारी चीज़ें।।

फ़क़त कमरों में टहला क्यों करें हम।।


जो इक नस्ल फ़रोमाया को पहुँचे।।

वो सरमाया इकट्ठा क्यों करें हम।।


हैं बाशिंदे उसी बस्ती के हम भी।।

सो ख़ुद पर भी भरोसा क्यों करें हम।।


चबा लें क्यों न ख़ुद ही अपना ढाँचा।।

तुम्हें रातिब मुहय्या क्यों करें हम।।


पड़ी हैं दो इंसानों की लाशें।।

ज़मीं का बोझ हल्का क्यों करें हम।।


ये बस्ती है मुसलामानों की बस्ती।।

यहाँ कार-ए-मसीहा क्यूँ करें हम।।




• ख़ून थूकेगी ज़िंदगी कब तक।।

याद आएगी अब तिरी कब तक।।


जाने वालों से पूछना ये सबा।।

रहे आबाद दिल-गली कब तक।।


दिल ने जो उम्र-भर कमाई है।।

वो दुखन दिल से जाएगी कब तक।।


बनी-आदम की ज़िंदगी है अज़ाब।।

ये ख़ुदा को रुलाएगी कब तक।।


हादिसा ज़िंदगी है आदम की।।

साथ देगी भला ख़ुशी कब तक।।


वो सबा उस के बिन जो आई थी।।

वो उसे पूछती रही कब तक।।


मीर-जौनी ज़रा बताएँ तो।।

ख़ुद में ठहरेंगे आप ही कब तक।।


John Elia 



जॉन एलिया शेर


• मैं भी बहुत अजीब हूँ इतना अजीब हूँ कि बस।।

ख़ुद को तबाह कर लिया और मलाल भी नहीं।।


Mai bhi bahut azib hu itna azib hu ki bas

Khud ko tabah kar Liya aur malal bhi nahi



• ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ता।।

एक ही शख़्स था जहान में क्या।।


Ye mujhe chain kyu nahi padhta

Ek hi shakhas tha Jahan me kya 



• ज़िंदगी किस तरह बसर होगी।।

दिल नहीं लग रहा मोहब्बत में।।


Zindagi kis tarah basar hogi

Dil nahi lag raha mohabbat me 


• सारी दुनिया के ग़म हमारे हैं।।

और सितम ये कि हम तुम्हारे हैं।।


Sari duniya ke gam hamare hai

Aur sitam ye ki ham tumhare hai 



• किस लिए देखती हो आईना।।

तुम तो ख़ुद से भी ख़ूबसूरत हो।।


Kis liye dekhti ho aayina

Tum to khud se bhi khubsurat ho 


• मुझे अब तुम से डर लगने लगा है।।

तुम्हें मुझ से मोहब्बत हो गई क्या।।


Mujhe ab tum se dar lagne laga hai

Tumhe mujh se mohabbat ho gai kya 



• उस गली ने ये सुन के सब्र किया।।

जाने वाले यहाँ के थे ही नहीं।।


Us gali ne ye sun ke sabr kiya

Jane vale yaha ke the hi nahi 



• कितनी दिलकश हो तुम कितना दिल-जू हूँ मैं।।

क्या सितम है कि हम लोग मर जाएँगे।।


Kitni dilkash ho tum kitna dil joo hu mai

Kya sitam hai ki ham log mar jayenge 



• और तो क्या था बेचने के लिए।।

अपनी आँखों के ख़्वाब बेचे हैं।।


Aur to kya tha bechne ke liye

Apni aankhon ke khwaab beche hai 



• मेरी बाँहों में बहकने की सज़ा भी सुन ले।।

अब बहुत देर में आज़ाद करूँगा तुझ को।।


Meri banho me bahakne ki saja bhi sun le

Ab bahut der se Azad karunga tujh ko



• मैं रहा उम्र भर जुदा ख़ुद से।।

याद मैं ख़ुद को उम्र भर आया।।


Mai raha umr bhar juda khud se

Yaad mai khud ko umr bhar aaya 



• जान-लेवा थीं ख़्वाहिशें वर्ना।।

वस्ल से इंतिज़ार अच्छा था।।


Jaan leva thi khwahishen varna

Vasl se intezaar achha tha 


• कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगे।।

जाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे।।


Kitne esh se rahte honge kitne iterate honge

Jane kaise log vo honge Jo us ko bhate honge



• नहीं दुनिया को जब पर्वा हमारी।।

तो फिर दुनिया की पर्वा क्यूँ करें हम।।


Nahi duniya ko jab parva hamari

To phir duniya ki parvah kyu kare ham 


• हमारी ही तमन्ना क्यूँ करो तुम।।

तुम्हारी ही तमन्ना क्यूँ करें हम।।


Hamari hi tammana kyu karo tum

Tumhari hi tamnna kyu kare ham 


• बोलते क्यूँ नहीं मिरे हक़ में।।

आबले पड़ गए ज़बान में क्या।।


Bolte kyu nahi mere haq me

Able padh gaye jaban me kya 


• ख़ूब है शौक़ का ये पहलू भी।।

मैं भी बर्बाद हो गया तू भी।।


Khub hai shauk ka ye pahlu bhi

Mai bhi barbaad ho Gaya tu bhi 


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