( जोश मलीहाबादी का जीवन परिचय )
Josh malihabadi shayari : प्रिय दोस्तों आज हम क्रांति – कवि (Kranti kavi) जोश मलीहाबादी {Josh malihabadi} के बारे में बताने जा रहा हु जिन्हे शायर –ए–इंकलाब { Shayar e inklab} के नाम से जाना जाता हैं, इनकी लिखी सियासी नज्में लोगो में काफी ज्यादा मशहूर हैं, जोश मलीहाबादी { Josh malihabadi } का जन्म 5 दिसंबर 1998 को मलिहाबाद भारत में हुआ था। किंतु बटवारे के बाद पाकिस्तान ( Pakistan) चले गए थे। इनका पूरा नाम ‘शब्बीर अहमद हसन खां’ था इनके वालिद का नाम बशीर अहमद खां था, जोश मलीहाबादी {Josh malihabadi} के दादा और परदादा भी एक मशहूर शायर और लेखक थे, उर्दू शायरी { Urdu Shayari } जोश मलीहाबादी { Josh malihabaadi } को विरासत में मिली थी, जोश मलीहाबादी { Josh malihabadi } आज़ादी के समय अपने इंकलाबी शायरी से कई सफल आंदोलन किए जिसके बाद इनको शायर ए इंकलाब का लकब मिल गया, पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर तमाम हस्तियां जोश मलीहाबादी {Josh malihabadi} के शायरी के कायल थे।
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जोश मलीहाबादी की गजलें
• जब से मरने की जी में ठानी है।।
किस क़दर हम को शादमानी है।।
क्यूँ लब-ए-इल्तिजा को दूँ जुम्बिश।।
तुम न मानोगे और न मानी है।।
शाइरी क्यूँ न रास आए मुझे।।
ये मिरा फ़न्न-ए-ख़ानदानी है।।
दिल मिला है जिन्हें हमारा सा।।
तल्ख़ उन सब की ज़िंदगानी है।।
कोई सदमा ज़रूर पहुँचेगा।।
आज कुछ दिल को शादमानी है।।
Josh Malihabadi Ghazal
• मेरी हालत देखिए और उन की सूरत देखिए।।
फिर निगाह-ए-ग़ौर से क़ानून-ए-क़ुदरत देखिए।।
आप इक जल्वा सरासर मैं सरापा इक नज़र।।
अपनी हाजत देखिए मेरी ज़रूरत देखिए।।
मुस्कुरा कर इस तरह आया न कीजे सामने।।
किस क़दर कमज़ोर हूँ मैं मेरी सूरत देखिए।।
मौत भी आई तो चेहरे पर तबस्सुम ही रहा।।
ज़ब्त पर है किस क़दर हम को भी क़ुदरत देखिए।।
इस से बढ़ कर और इबरत का सबक़ मुमकिन नहीं।।
जो नशात-ए-ज़िंदगी थे उन की तुर्बत देखिए।।
ख़ुश-नुमा या बद-नुमा हो दहर की हर चीज़ में।।
जोश की तख़्ईल कहती है कि नुदरत देखिए।।
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जोश मलीहाबादी की नज्में
{शिकस्त ए जिंदा का ख़्वाब}
• क्या हिन्द का ज़िंदाँ काँप रहा है गूँज रही हैं तक्बीरें
उकताए हैं शायद कुछ क़ैदी और तोड़ रहे हैं ज़ंजीरें
दीवारों के नीचे आ आ कर यूँ जम्अ हुए हैं ज़िंदानी
सीनों में तलातुम बिजली का आँखों में झलकती शमशीरें
भूखों की नज़र में बिजली है तोपों के दहाने ठंडे हैं
तक़दीर के लब को जुम्बिश है दम तोड़ रही हैं तदबीरें
आँखों में गदा की सुर्ख़ी है बे-नूर है चेहरा सुल्ताँ का
तख़रीब ने परचम खोला है सज्दे में पड़ी हैं तामीरें
क्या उन को ख़बर थी ज़ेर-ओ-ज़बर रखते थे जो रूह-ए-मिल्लत को
उबलेंगे ज़मीं से मार-ए-सियह बरसेंगी फ़लक से शमशीरें
क्या उन को ख़बर थी सीनों से जो ख़ून चुराया करते थे
इक रोज़ इसी बे-रंगी से झलकेंगी हज़ारों तस्वीरें
क्या उन को ख़बर थी होंटों पर जो क़ुफ़्ल लगाया करते थे
इक रोज़ इसी ख़ामोशी से टपकेंगी दहकती तक़रीरें
संभलों कि वो ज़िंदाँ गूँज उठा झपटो कि वो क़ैदी छूट गए
उट्ठो कि वो बैठीं दीवारें दौड़ो कि वो टूटी ज़ंजीरें
Josh malihabadi nazm
{ वतन }
• ऐ वतन पाक वतन रूह-ए-रवान-ए-अहरार
ऐ कि ज़र्रों में तिरे बू-ए-चमन रंग-ए-बहार
ऐ कि ख़्वाबीदा तिरी ख़ाक में शाहाना वक़ार
ऐ कि हर ख़ार तिरा रू-कश-ए-सद-रू-ए-निगार
रेज़े अल्मास के तेरे ख़स-ओ-ख़ाशाक में हैं
हड्डियाँ अपने बुज़ुर्गों की तिरी ख़ाक में हैं
पहले जिस चीज़ को देखा वो फ़ज़ा तेरी थी
पहले जो कान में आई वो सदा तेरी थी
पालना जिस ने हिलाया वो हवा तेरी थी
जिस ने गहवारे में चूमा वो सबा तेरी थी
अव्वलीं रक़्स हवा मस्त घटाएँ तेरी
भीगी हैं अपनी मसें आब-ओ-हवा में तेरी
पाई ग़ुंचों में तिरे रंग की दुनिया हम ने
तेरे काँटों से लिया दरस-ए-तमन्ना हम ने
तेरे क़तरों से सुनी क़िरअत-ए-दरिया हम ने
तेरे ज़र्रों में पढ़ी आयत-ए-सहरा हम ने
क्या बताएँ कि तिरी बज़्म में क्या क्या देखा
एक आईने में दुनिया का तमाशा देखा
ऐ वतन जोश है फिर क़ुव्वत-ए-ईमानी में
ख़ौफ़ क्या दिल को सफ़ीना है जो तुग़्यानी में
दिल से मसरूफ़ हैं हर तरह की क़ुर्बानी में
महव हैं जो तिरी कश्ती की निगहबानी में
ग़र्क़ करने को जो कहते हैं ज़माने वाले
मुस्कुराते हैं तिरी नाव चलाने वाले
हम ज़मीं को तिरी नापाक न होने देंगे
तेरे दामन को कभी चाक न होने देंगे
तुझ को जीते हैं तो ग़मनाक न होने देंगे
ऐसी इक्सीर को यूँ ख़ाक न होने देंगे
जी में ठानी है यही जी से गुज़र जाएँगे
कम से कम वादा ये करते हैं कि मर जाएँगे
Ae watan mere watan Josh Malihabadi
{बीते हुए दिन}
• क्या हाल कहें उस मौसम का
जब जिंस-ए-जवानी सस्ती थी
जिस फूल को चूमो खुलता था
जिस शय को देखो हँसती थी
जीना सच्चा जीना था
हस्ती ऐन हस्ती थी
अफ़्साना जादू अफ़्सूँ था
ग़फ़लत नींदें मस्ती थी
उन बीते दिनों की बात है ये
जब दिल की बस्ती बस्ती थी
गोरे गोरे शाने थे
हल्की-फुल्की बाँहें थीं
हर-गाम पे ख़ल्वत-ख़ाने थे
हर मोड़ पे इशरत-गाहें थीं
तुग़्यान ख़ुशी के आँसू थे
तकमील-ए-तरब की आहें थीं
इश्वे चुहलें ग़म्ज़े थे
पल्तीं ख़ुशियाँ चाहीं थीं
उन बीते दिनों की बात है ये
जब दिल की बस्ती बस्ती थी
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जोश मलीहाबादी शायरी
• दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने न दिया।।
जब चली सर्द हवा मैं ने तुझे याद किया।।
Dil ki choton ne kabhi chain se rahne na diya
Jab chali sard hava maine tujhe yaad kiya
~Josh malihabadi
जोश शायरी
हद है अपनी तरफ़ नहीं मैं भी।।
और उन की तरफ़ ख़ुदाई है।।
Had hai apni taraf nahi mai bhi
Aur un ki tarah khudai hai
~Josh malihabadi
Josh malihabadi poetry collection
• मेरे रोने का जिस में क़िस्सा है।।
उम्र का बेहतरीन हिस्सा है।।
Mere rone ka jis me kissa hai
Umr ka behtarin hissa hai
~Josh malihabadi
जोश मलीहाबादी इंकलाबी शायरी / Josh malihabadi inkalabi poetry
• मुझ को तो होश नहीं तुम को ख़बर हो शायद।।
लोग कहते हैं कि तुम ने मुझे बर्बाद किया।।
Mujh ko to hosh nahi tum khabar ho shayad
Log kahate hai ki tum ne mujhe barbad kiya hai
~Josh malihabadi
Josh malihabadi shayari / जोश मलीहाबादी शायरी
• इंसान के लहू को पियो इज़्न-ए-आम है।।
अंगूर की शराब का पीना हराम है।।
Insan ke lahu ko piyo izn e aam hai
Angoor ki sharab ka pina haram hai
~Josh malihabadi
जोश मलीहाबादी शायरी इन हिंदी
• उस ने वादा किया है आने का।।
रंग देखो ग़रीब ख़ाने का।।
Us ne vada kiya hai aane ka
Rang dekho garib khane ka
~जोश मलीहाबादी
जोश मलीहाबादी नज़्म
• आप से हम को रंज ही कैसा।।
मुस्कुरा दीजिए सफ़ाई से।।
Aap se ham ko ranj hi kaisa
Muskura dijiye safai se.
~Josh malihabadi
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• पहचान गया सैलाब है उस के सीने में अरमानों का।।
देखा जो सफ़ीने को मेरे जी छूट गया तूफ़ानों का।।
Pahachan gaya sailab hai us ke sine me armanon ka
Dekha jo safine ko mere ji chhut gaya tufanon ka
~Josh malihabadi
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