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• कोई अटका हुआ है पल शायद
वक़्त में पड़ गया है बल शायद
लब पे आई मिरी ग़ज़ल शायद
वो अकेले हैं आज-कल शायद
आ रही है जो चाप क़दमों की
खिल रहे हैं कहीं कँवल शायद
जानते हैं सवाब-ए-रहम-ओ-करम
उन से होता नहीं अमल शायद
दिल अगर है तो दर्द भी होगा
इस का कोई नहीं है हल शायद
राख को भी कुरेद कर देखो
अभी जलता हो कोई पल शायद
चाँद डूबे तो चाँद ही निकले
आप के पास होगा हल शायद।
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•हवा के सींग न पकड़ो खदेड़ देती है
ज़मीं से पेड़ों के टाँके उधेड़ देती है
ज़मीं सा दूसरा कोई सख़ी कहाँ होगा
ज़रा सा बीज उठा ले तो पेड़ देती है
मैं चुप कराता हूँ हर शब उमडती बारिश को
मगर ये रोज़ गई बात छेड़ देती है
रुँधे गले की दुआओं से भी नहीं खुलता
दर-ए-हयात जिसे मौत भेड़ देती है
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• दिखाई देते हैं धुँद में जैसे साए कोई
मगर बुलाने से वक़्त लौटे न आए कोई
मिरे मोहल्ले का आसमाँ सूना हो गया है
बुलंदियों पे अब आ के पेचे लड़ाए कोई
वो ज़र्द पत्ते जो पेड़ से टूट कर गिरे थे
कहाँ गए बहते पानियों में बुलाए कोई
मज़ार पे खोल कर गरेबाँ दुआएँ माँगें
जो आए अब के तो लौट कर फिर न जाए कोई
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• हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते
जिस की आवाज़ में सिलवट हो निगाहों में शिकन
ऐसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोड़ा करते
लग के साहिल से जो बहता है उसे बहने दो
ऐसे दरिया का कभी रुख़ नहीं मोड़ा करते
जागने पर भी नहीं आँख से गिरतीं किर्चें
इस तरह ख़्वाबों से आँखें नहीं फोड़ा करते
शहद जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा
जाने वालों के लिए दिल नहीं थोड़ा करते
जा के कोहसार से सर मारो कि आवाज़ तो हो
ख़स्ता दीवारों से माथा नहीं फोड़ा करते
• आइना देख कर तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
Aayina dekh kar tasalli hui
Ham ko is ghar me janta hai koi
• वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर
आदत इस की भी आदमी सी है
Wakt rahta nahi kahi tik kar
Adat hai is ki bhi adami si hai
• कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है
ज़िंदगी एक नज़्म लगती है
• Koi khamosh zakhm lagati hai
zindagi ek nazm lagati hai
• ख़ुशबू जैसे लोग मिले अफ़्साने मे
एक पुराना ख़त खोला अनजाने में
Khushboo jaise log mile afsane me
Ek purana khat khola anzane me
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