( मीर तक़ी मीर का जीवन परिचय , meer Taqi Meer biography , meer Taqi meer poetry, meer Taqi Meer shayari )
Mir taki Mir shayari : प्रिय दोस्तों आज हम आप को बताने वाले हैं उर्दू शायरी { Urdu shayari} के जनक और लफ़्ज़–ए –मानी के जादूगर मीर तकी मीर {Mir Taqi Mir} के बारे में जिन्हें खुदा–ए–सुखन यानी (शायरी का खुदा ) { The God of Poetry } कहा हैं, मीर तकी मीर {Meer Taqi Meer} का जन्म 1723 ईस्वी में दिल्ली { Dilli } के आगरा { Agara } में हुआ था, इनका पूरा नाम मोहम्मद तकी { Mohammad Taqi }था, इनके वालिद का नाम अली मुत्तकी { Ali Muttaki } था ,जो अपने जमाने के करामाती बुजुर्ग थे,मीर जब 11 साल के थे तभी इनके वालिद का इंतेकाल हो गया था जिसके बाद इनपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था। मीर तकी मीर { Meer taqi Mir } की पूरी जिंदगी काटो की तरह रही, एक के बाद एक मुसीबत से जकड़े रहते थे, वालिद के इंतकाल के बाद इनके चाचाओ ने भी इनपर दया नही किया और इन्हे दर दर को भटकने के लिए छोड़ दिया, बड़ी बेबसी के बाद 14 की उम्र में दिल्ली आ गए। कहा जाता हैं की मीर तकी मीर ( Mir taki Mir ) को अपने ही रिश्तेदार की एक लड़की से इश्क {Love}हो गया था लेकिन रिश्तेदार मीर तकी मीर को बिलकुल भी पसंद नही करते थे , जिसके बाद मीर को आगरा छोड़ कर दिल्ली आना पड़ा।
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मीर तकी मीर ( फ़ोटो रेख्ता ) |
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मीर तकी मीर { Meer Taqi Mir }ने अपनी किताब जिक्र ए मीर {Zikr E Meer} में बताया हैं की दिल्ली आने के बाद "मीर जफरी अली" और "नकात उल शोरा" को अपना उस्ताद बनाया, इन्ही से शुरुआती शिक्षा और उर्दू शायरी {Urdu Shayari} सीखी। मीर तकी मीर दिल्ली में रहकर अपने बेबसी और मुफलिसी को याद कर के उसको जुनून बनाया और उर्दू शायरी {Urdu poetry}लिखना शुरू कर दिया। मीर तकी मीर ने उर्दू शायरी {Urdu poetry} को नए रूप से जन्म दिया, उसके बाद इनके चाहने वाले हर दौर में रहें मिर्ज़ा ग़ालिब { Mirza Ghalib } से लेकर नासिर काजमी { Nasir Kazmi } जैसे शायर तक इनके चाहने वाले रहे।
मीर तकी मीर और मिर्ज़ा ग़ालिब की तुलना
अगर मिर्ज़ा गालिब { Mirza Ghalib } और मीर तकी मीर {Mir Taqi Mir} से तुलना की जाए तो मीर तकी मीर मिर्ज़ा गालिब से कोशो आगे हैं, मीर तकी मीर एक नए लेख के लिए जानें जाते हैं जिसका नाम "मीरियात" था, मीर तकी मीर गज़ल, मार्शिया, नज़्म के अलावा मीरियात भी लिखते थे, मीर तकी मीर ने अपने पूरी जिंदगी में..
ग़ज़ल – 345 ग़ज़ल
नज़्म– 5 नज़्म
मीरियात – 2021 मिरियात
कसीदा– 10 कसीदा
रूबाई –105 रूबाई
मसनवी – 37 मशनवी
सलाम – 7 सलाम
इसके अलावा मीर और भी 10 से ज्यादा तरीको में अपने लेख लिखे, ये किस्मत की बात है की गालीब को बहुत ज्यादा शोहरत मिल गई और मीर तकी मीर [Meer taqi Meer] को आज भी बहुत कम लोग जानते हैं।
उर्दू शायरी {Urdu shayari} के मशहूर शायर मिर्ज़ा ग़ालिब {Mirza Ghalib } ने इस तरह से तारीफ़ किया और लिखते हैं कि..
“ रेख्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो "ग़ालिब"
कहते है अगले जमाने में कोई "मीर" भी था”
नशीर काजमी ने तो साफ़ साफ़ कह दिया था की..
“शेर होते हैं ‘मीर’ के ‘नासिर’
बस लफ्ज़ दाए बाए करता हैं”
हसरत मोहानी , मोहम्मद इब्राहिम जौक , जॉन एलिया , जैसे तमाम शायरों ने अपने अंदाज़ में मीर की तारीफ़ की, मीर को भी अपनी महानता का पूरा विश्वास था।
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मीर तकी मीर शायरी |
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मीर तकी मीर {Meer Taqi Meer} ने अपने पूरी जिंदगी में 6 दीवान लिखें..
ज़िक्र–ए–मीर {Zikr E Meer}
फैज़–ए–मीर {Faiz E Meer }
नकात उल शोरा {Nakat ul shora}
कई रिर्पोट में ऐसा भी माना जाता है की मीर तकी मीर के सैकड़ों लेख जो आज तक प्रकाशित नहीं हो पाए। जिसपर अभी तक रिसर्च चल रहा हैं।
मीर तकी मीर {Meer Taqi Meer} अपने शायरी में नाजुकी, दर्द, बेबसी, लाचारी, मुफलिसी, मौजूदा हालात और आने वाला कल तक का भी तर्जुमानी की इनकी महानता को भले ही कोई न पहचानता हो लेकिन जो भी इनके बारे में एक बार पढ़ता है वो मीर के रंग में डूब जाता हैं। फिर उस व्यक्ति पर मीर का बहुत ही गहरा रंग चढ़ता हैं.
21 सितंबर 1810 को मीर तकी मीर {Mir Taqi Mir} लगभग 90 साल की उम्र में इस दुनियां को अलविदा कह दिया था, लेकिन अपने पीछे कयामत तक याद रखा जाने वाला लेख छोड़ दिया है, उसी दौर से ये रिवायत चली आ रही है अगर आज का शायर जब तक मीर को नहीं पढ़ता तब तक उसे अधूरा और बेकार समझा जाता है। लेकिन जिसने मीर को जरा सा भी पढ़ लिया तो उसे शायरी की दुनियां समझ आ जाती हैं।
यकीनन मीर तकी मीर को पढ़ने के बाद इंसानियत समझ में आती है, और दिल को अज़ीब सा सुकून मिलता हैं।
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Meer taqi meer shayari |
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मीर तक़ी मीर की गजलें
• हस्ती अपनी हबाब की सी है।
ये नुमाइश सराब की सी है।।
नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिए।
पंखुड़ी इक गुलाब की सी है।।
बार बार उस के दर पे जाता हूँ।
हालत अब इज़्तिराब की सी है।।
नुक़्ता-ए-ख़ाल से तिरा अबरू।
बैत इक इंतिख़ाब की सी है।।
मैं जो बोला कहा कि ये आवाज़।
उसी ख़ाना-ख़राब की सी है।।
आतिश-ए-ग़म में दिल भुना शायद।
देर से बू कबाब की सी है।।
मीर उन नीम-बाज़ आँखों में।
सारी मस्ती शराब की सी है।।
Meer Taqi Meer Ghazal
• पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है।
जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है।।
आशिक़ सा तो सादा कोई और न होगा दुनिया में।
जी के ज़ियाँ को इश्क़ में उस के अपना वारा जाने है।।
लगने न दे बस हो तो उस के गौहर-ए-गोश को बाले तक।
उस को फ़लक चश्म-ए-मह-ओ-ख़ुर की पुतली का तारा जाने है।।
क्या ही शिकार-फ़रेबी पर मग़रूर है वो सय्याद बचा।
ताइर उड़ते हवा में सारे अपने असारा जाने है।।
क्या क्या फ़ित्ने सर पर उस के लाता है माशूक़ अपना।
जिस बे-दिल बे-ताब-ओ-तवाँ को इश्क़ का मारा जाने है।।
रख़नों से दीवार-ए-चमन के मुँह को ले है छुपा यानी।
इन सूराख़ों के टुक रहने को सौ का नज़ारा जाने है।।
मीर की गजलें
• शेर के पर्दे में मैं ने ग़म सुनाया है बहुत।।
मरसिए ने दिल के मेरे भी रुलाया है बहुत।।
वादी ओ कोहसार में रोता हूँ ड़ाढें मार मार।।
दिलबरान-ए-शहर ने मुझ को सताया है बहुत।।
वा नहीं होता किसू से दिल गिरफ़्ता इश्क़ का।।
ज़ाहिरन ग़मगीं उसे रहना ख़ुश आया है बहुत।।
मीर गुम-गश्ता का मिलना इत्तिफ़ाक़ी अम्र है।।
जब कभू पाया है ख़्वाहिश-मंद पाया है बहुत।।
Best ghazal of Meer Taqi Meer
• जब रोने बैठता हूँ तब क्या कसर रहे है।
रूमाल दो दो दिन तक जूँ अब्र तर रहे है।।
उन रोज़ों इतनी ग़फ़लत अच्छी नहीं इधर से।
अब इज़्तिराब हम को दो दो पहर रहे है।।
तलवार अब लगा है बे-डोल पास रखने।
ख़ून आज कल किसू का वो शोख़ कर रहे है।।
दर से कभू जो आते देखा है मैं ने उस को।
तब से उधर ही अक्सर मेरी नज़र रहे है।।
आख़िर कहाँ तलक हम इक रोज़ हो चुकेंगे।
बरसों से वादा-ए-शब हर सुब्ह पर रहे है।।
मीर अब बहार आई सहरा में चल जुनूँ कर।।
कोई भी फ़स्ल-ए-गुल में नादान घर रहे है।।
चुनिंदा गजलें
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Meer Taqi Meer shayari |
• गरचे कब देखते हो पर देखो।।
आरज़ू है कि तुम इधर देखो।।
इश्क़ क्या क्या हमें दिखाता है।
आह तुम भी तो इक नज़र देखो।।
हर ख़राश-ए-जबीं जराहत है।
नाख़ुन-ए-शौक़ का हुनर देखो।।
थी हमें आरज़ू लब-ए-ख़ंदाँ।
सो एवज़ उस के चश्म-ए-तर देखो।।
रंग-रफ़्ता भी दिल को खींचे है।
एक शब और याँ सहर देखो।।
दिल हुआ है तरफ़ मोहब्बत का।
ख़ून के क़तरे का जिगर देखो।।
पहुँचे हैं हम क़रीब मरने के।।
यानी जाते हैं दूर अगर देखो।।
लुत्फ़ मुझ में भी हैं हज़ारों मीर।
दीदनी हूँ जो सोच कर देखो।।
प्यार मोहब्बत की गजल /रूहानी गजलें
• आह और अश्क ही सदा है याँ।
रोज़ बरसात की हवा है याँ।।
जिस जगह हो ज़मीन तफ़्ता समझ।
कि कोई दिल-जला गड़ा है याँ।।
गो कुदूरत से वो न देवे रो।
आरसी की तरह सफ़ा है याँ।।
हर घड़ी देखते जो हो ईधर।।
ऐसा कि तुम ने आ निकला है याँ।।
रिंद मुफ़्लिस जिगर में आह नहीं।
जान महज़ूँ है और क्या है याँ।।
इक सिसकता है एक मरता है।
हर तरफ़ ज़ुल्म हो रहा है याँ।।
मौत मजनूँ को भी यहीं आई।
कोहकन कल ही मर गया है याँ।।
मीर तक़ी मीर की गजलें
• मक्का गया मदीना गया कर्बला गया।।
जैसा गया था वैसा ही चल फिर के आ गया।।
देखा हो कुछ उस आमद-ओ-शुद में तो मैं कहूँ।।
ख़ुद गुम हुआ हूँ बात की तह अब जो पा गया।।
जाँ-सोज़ आह ओ नाला समझता नहीं हूँ मैं।।
यक शोला मेरे दिल से उठा था जला गया।।
देखा जो राह जाते तबख़्तुर के साथ उसे।।
फिर मुझ शिकस्ता-पा से न इक-दम रहा गया।।
वो मुझ से भागता ही फिरा किब्र-ओ-नाज़ से।।
जूँ जूँ नियाज़ कर के मैं उस से लगा गया।।
बैठा तो बोरिए के तईं सर पे रख के मीर।।
सफ़ किस अदब से हम फ़ुक़रा की उठा गया।।
Meer Taqi Meer ke ghazals
• उल्टी हो गईं सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम किया।।
देखा इस बीमारी-ए-दिल ने आख़िर काम तमाम किया।।
हर्फ़ नहीं जाँ-बख़्शी में उस की ख़ूबी अपनी क़िस्मत की।।
हम से जो पहले कह भेजा सो मरने का पैग़ाम किया।।
अहद-ए-जवानी रो रो काटा पीरी में लीं आँखें मूँद।।
यानी रात बहुत थे जागे सुब्ह हुई आराम किया।।
सरज़द हम से बे-अदबी तो वहशत में भी कम ही हुई।।
कोसों उस की ओर गए पर सज्दा हर हर गाम किया।।
शैख़ जो है मस्जिद में नंगा रात को था मय-ख़ाने में।।
जुब्बा ख़िर्क़ा कुर्ता टोपी मस्ती में इनआ'म किया।।
याँ के सपीद ओ सियह में हम को दख़्ल जो है सो इतना है।।
रात को रो रो सुब्ह किया या दिन को जूँ तूँ शाम किया।।
काम हुए हैं सारे ज़ाएअ हर साअत की समाजत से।।
इस्तिग़्ना की चौगुनी उन ने जूँ जूँ मैं इबराम किया।।
सुब्ह चमन में उस को कहीं तकलीफ़-ए-हवा ले आई थी।।
रुख़ से गुल को मोल लिया क़ामत से सर्व ग़ुलाम किया।।
मीर के दीन-ओ-मज़हब को अब पूछते क्या हो उन ने तो।।
क़श्क़ा खींचा दैर में बैठा कब का तर्क इस्लाम किया।।
मीर की रुबाई
• आरज़ूएँ हज़ार रखते हैं।।
तो भी हम दिल को मार रखते हैं।।
बर्क़ कम-हौसला है हम भी तो।।
दिलक-ए-बे-क़रार रखते हैं।।
न निगह ने पयाम ने वादा।।
नाम को हम भी यार रखते हैं।।
ग़ैर ही मूरिद-ए-इनायत है।।
हम भी तो तुम से प्यार रखते हैं।।
चोट्टे दिल के हैं बुताँ मशहूर।।
बस यही एतिबार रखते हैं।।
हम से ख़ुश-ज़मज़मा कहाँ यूँ तो।।
लब ओ लहजा हज़ार रखते हैं।।
फिर भी करते हैं मीर साहब इश्क़।।
हैं जवाँ इख़्तियार रखते हैं।।
मीर तकी मीर शायरी
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मीर तकी मीर शायरी |
• राह-ए-दूर-ए-इश्क़ में रोता है क्या।।
आगे आगे देखिए होता है क्या।।
Raah-e-door-e-ishq mein rota hai kya
aage aage dekhie hota hai kya
~Meer Taqi meer
मीर तक़ी मीर की शायरी
• नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिए।।
पंखुड़ी इक गुलाब की सी है।।
Naazukee us ke lab kee kya kahie
pankhudee ik gulaab kee see hai
~Mir taqi Mir
Meer ki shayari in Urdu
• अब तो जाते हैं बुत-कदे से मीर ।।
फिर मिलेंगे अगर ख़ुदा लाया।।
Ab to jaate hain but-kade se meer
phir milenge agar khuda laaya
~Meer taqi Meer
मीर तक़ी मीर २ लाइन शायरी
• बारे दुनिया में रहो ग़म-ज़दा या शाद रहो।।
ऐसा कुछ कर के चलो याँ कि बहुत याद रहो।।
Baare duniya mein raho gam-zada ya shaad raho
aisa kuchh kar ke chalo yaan ki bahut yaad raho
~Mir Taqi Mir
उर्दू की मशहूर शायरी
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मीर तकी मीर के शायरी |
• फूल गुल शम्स ओ क़मर सारे ही थे।
पर हमें उन में तुम्हीं भाए बहुत।।
Phool gul shams o kamar sare hi the par humen un men tumhi bhaye bahut.
~Mir taki Mir
मीर तकी मीर कविता / shayari mir taqi mir
• रोते फिरते हैं सारी सारी रात।।
अब यही रोज़गार है अपना।।
Rote firate han sari sari rat ab yahi rozgar hai apana
~Meer taki Mir
Meer Taqi Meer poetry
• क्या कहूँ तुम से मैं कि क्या है इश्क़।।
जान का रोग है बला है इश्क़।।
kya kahun tum se man ki kya hai ishq jan ka rog hai bala hai ishq
~Meer Taqi Meer
Best shayari of Meer Taqi Meer
मीर साहब तुम फ़रिश्ता हो तो हो।।
आदमी होना तो मुश्किल है मियाँ।।
meer saahab tum farishta ho to ho
aadamee hona to mushkil hai miyaan
~Meer Taqi Meer
मीर तकी मीर love shayari
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मीर तकी मीर शायरी |
• क्या कहें कुछ कहा नहीं जाता।।
अब तो चुप भी रहा नहीं जाता।।
kya kahen kuchh kaha nahin jaata
ab to chup bhee raha nahin jaata
~Meer taqi Meer
Best shayari in 2023
• अब कर के फ़रामोश तो नाशाद करोगे।।
पर हम जो न होंगे तो बहुत याद करोगे।।
Ab kar ke faraamosh to naashaad karoge
par ham jo na honge to bahut yaad karoge
~Meer Taqi Meer
मीर के शेर
• वस्ल में रंग उड़ गया मेरा।।
क्या जुदाई को मुँह दिखाऊँगा।।
Vasl mein rang ud gaya mera
kya judaee ko munh dikhaoonga
~Meer Taqi Meer
मीर तकी मीर के रूहानी शेर
• ज़ख़्म झेले दाग़ भी खाए बहुत।।
दिल लगा कर हम तो पछताए बहुत।।
Zakhm jhele daag bhee khae bahut
dil laga kar ham to pachhatae bahut
~Meer Taqi Meer
उर्दू के पहले शायर
• मीर उन नीम-बाज़ आँखों में।।
सारी मस्ती शराब की सी है।।
meer un neem-baaz aankhon mein
saaree mastee sharaab kee see hai
~मीर तकि मीर
महान शायरों के चंद शेर
• इश्क़ ही इश्क़ है जहाँ देखो।।
सारे आलम में भर रहा है इश्क़।।
Ishq hee ishq hai jahaan dekho
saare aalam mein bhar raha hai ishq
~Meer Taqi Meer
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