Urdu Ghazal : आईए जानते हैं बेहतरीन उर्दू ग़ज़ल..

Urdu ghazal : प्रिय दोस्तों आज हम इस लेख में आप को बेहतरीन उर्दू ग़ज़ल ( urdu ghazal ) बताएंगे, जिसे पढ़ने के बाद आपके अंदर तारों – ताजगी आ जाएगी, दोस्तों उर्दू अदब की मिठास पूरी दुनिया में जानी जाती हैं, उर्दू भाषा में कहें गए शब्द लोगों को काफ़ी पसंद आती हैं, उर्दू विधा कि ही प्रचलित नाम हैं उर्दू ग़ज़ल ( Urdu Ghazal ) उर्दू ग़ज़ल को लोग काफी ज्यादा पसंद और पढ़ते हैं, उर्दू ग़ज़ल की शुरुआत कई सौ साल पहले शुरू हुई थी जिसे आज के दौर में काफ़ी ज्यादा प्रसिद्धि मिल गई हैं, अब तक दुनिया भर से हजारों लाखों शायर उर्दू गज़ल { urdu ghazal } में अपना योगदान दे चुके हैं, और एक से बढ़कर एक ग़ज़ल और शेर लिख कर दुनियां के सामने रख चुके हैं। इसमें कुछ मशहूर शायरों का अहम योगदान है जैसे मीर तकी मीर को उर्दू शायरी का खुदा कहां जाता है मिर्जा ग़ालिब को उर्दू ग़ज़ल {Urdu ghazals }को आगे बढ़ाया हैं। आइए जानते है उर्दू शायरी urdu shayari 



Urdu ghazal


        Urdu Ghazal  


• मेरे सीने में आज हलचल सा क्यों हैं।।

ये दिल उस के लिए परेशान सा क्यों हैं ।।


वो शख्स अब नहीं है तेरा यकीन कर।।

किसी और का हैं वो तू हैरान सा क्यों हैं ।।


उसने सिर्फ़ मोहब्बत ही तो सिखाया हैं ।।

फिर मुझपर उनका अहशान सा क्यों है ।।


"कायम" छू कर तुझे पत्थर से मोम कर दिया ।।

तुझ में जान आ गई अब बे–जान सा क्यों हैं ।।


~केएस सिद्दीकी 


• खुदा जाने आज उसका कैसा जलवा होगा।

हुस्न होगा नजाकत होगा और जंवा होगा।।


कोई उसके चेहरे को पढ़े और बताए हमे।

सब के सामने उसका चेहरा कितना खिला होगा।।


वो नज़र झुकाए हुए चेहरे पर हया होगी।

डरते हुए लब उसका कांप रहा होगा।। 



मुझे पता है वो गमज़दा हुई थी मगर।

महफ़िल में उसके होने से खुदा वहां होगा।। 


~KS Siddiqui 



• बे-सबब मुस्कुरा रहा है चाँद।

कोई साज़िश छुपा रहा है चाँद।।


कितना ग़ाज़ा लगाया है मुँह पर।

धूल ही धूल उड़ा रहा है चाँद।।


जाने किस की गली से निकला है।

झेंपा झेंपा सा आ रहा है चाँद।।


छू के देखा तो गर्म था माथा।

धूप में खेलता रहा है चाँद।।


कैसा बैठा है छुप के पत्तों में।

बाग़बाँ को सता रहा है चाँद।।


~गुलज़ार  



• ये एक बात समझने में रात हो गई है।।

मैं उस से जीत गया हूँ कि मात हो गई है।।


बिछड़ के तुझ से न ख़ुश रह सकूँगा सोचा था।

तिरी जुदाई ही वज्ह-ए-नशात हो गई है।।


मैं अब के साल परिंदों का दिन मनाऊँगा।

मिरी क़रीब के जंगल से बात हो गई है।।


मैं जंगलों की तरफ़ चल पड़ा हूँ छोड़ के घर।

ये क्या कि घर की उदासी भी साथ हो गई है।।


~तहज़ीब हाफी



• वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा।

मसअला फूल का है फूल किधर जाएगा।।


वो हवाओं की तरह ख़ाना-ब-जाँ फिरता है।

एक झोंका है जो आएगा गुज़र जाएगा।।


आख़िरश वो भी कहीं रेत पे बैठी होगी।

तेरा ये प्यार भी दरिया है उतर जाएगा।।



हम तो समझे थे कि इक ज़ख़्म है भर जाएगा।

क्या ख़बर थी कि रग-ए-जाँ में उतर जाएगा।।


परवीन साकिर



• मिट्टी में मिला दे कि जुदा हो नहीं सकता।

अब इस से ज़ियादा मैं तिरा हो नहीं सकता।।



बस तू मिरी आवाज़ से आवाज़ मिला दे।

फिर देख कि इस शहर में क्या हो नहीं सकता।।



दहलीज़ पे रख दी हैं किसी शख़्स ने आँखें।

रौशन कभी इतना तो दिया हो नहीं सकता।।



ऐ मौत मुझे तू ने मुसीबत से निकाला।

सय्याद समझता था रिहा हो नहीं सकता।।


~मुनव्वर राणा 



• दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता।

तुम को भी तो अंदाज़ा लगाना नहीं आता।।


मैं भी उसे खोने का हुनर सीख न पाया।

उस को भी मुझे छोड़ के जाना नहीं आता।।


पहुँचा है बुज़ुर्गों के बयानों से जो हम तक।

क्या बात हुई क्यूँ वो ज़माना नहीं आता।।


इस छोटे ज़माने के बड़े कैसे बनोगे।

लोगों को जब आपस में लड़ाना नहीं आता।।


~वसीम बरेलवी 



• वो ज़माना गुज़र गया कब का।

था जो दीवाना मर गया कब का।।


वो जो लाया था हम को दरिया तक।

पार अकेले उतर गया कब का।।


ढूँढता था जो इक नई दुनिया।

लूट के अपने घर गया कब का।।


उस का जो हाल है वही जाने।

अपना तो ज़ख़्म भर गया कब का।।


~जावेद अख्तर 



• साँस लेते हुए भी डरता हूँ।।

ये न समझें कि आह करता हूँ।।


इतनी आज़ादी भी ग़नीमत है।

साँस लेता हूँ बात करता हूँ।।


शैख़ साहब ख़ुदा से डरते हों।

मैं तो अंग्रेज़ों ही से डरता हूँ।।


आप क्या पूछते हैं मेरा मिज़ाज।

शुक्र अल्लाह का है मरता हूँ।।


~अकबर इलाहाबादी



Urdu ghazal


• फिर मिरी याद आ रही होगी।।

फिर वो दीपक बुझा रही होगी।।


अपने बेटे का चूम कर माथा।।

मुझ को टीका लगा रही होगी।।


फिर उसी ने उसे छुआ होगा।।

फिर उसी से निभा रही होगी।।


फिर से इक रात कट गई होगी।।

फिर से इक रात आ रही होगी।।


जिस्म चादर सा बिछ गया होगा।।

रूह सिलवट हटा रही होगी।।


~कुमार विश्वास 



• बदन के दोनों किनारों से जल रहा हूँ मैं।

कि छू रहा हूँ तुझे और पिघल रहा हूँ मैं।।


बुला रहा है मिरा जामा-ज़ेब मिलने को।

तो आज पैरहन-ए-जाँ बदल रहा हूँ मैं।।


तुझी पे ख़त्म है जानाँ मिरे ज़वाल की रात।

तू अब तुलू भी हो जा कि ढल रहा हूँ मैं।।


~इरफ़ान सिद्दीकी 



• खुदा हम को ऐसी खुदाई न दे।।

कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे ।। 


खतावार समझेगी दुनियां तुझे।।

अब इतनी ज्यादा सफ़ाई न दे।।


खुदा ऐसे अहसास का नाम है।।

रहे सामने और दिखाई न दे।। 


~बशीर बद्र 



• तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ।।

मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ।।


ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को।।

कि मैं आप का सामना चाहता हूँ।।


ज़रा सा तो दिल हूँ मगर शोख़ इतना।।

वही लन-तरानी सुना चाहता हूँ।।


सितम हो कि हो वादा-ए-बे-हिजाबी।।

कोई बात सब्र-आज़मा चाहता हूँ।।


~अल्लामा इक़बाल 



• नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम।।

बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूँ करें हम।।


ये काफ़ी है कि हम दुश्मन नहीं हैं।।

वफ़ा-दारी का दावा क्यूँ करें हम।।


ख़मोशी से अदा हो रस्म-ए-दूरी।।

कोई हंगामा बरपा क्यूँ करें हम।।


हमारी ही तमन्ना क्यूँ करो तुम।।

तुम्हारी ही तमन्ना क्यूँ करें हम।।


किया था अहद जब लम्हों में हम ने।।

तो सारी उम्र ईफ़ा क्यूँ करें हम।।


~जॉन एलिया 


• रोग दिल को लगा गईं आँखें।।

इक तमाशा दिखा गईं आँखें।।


मिल के उन की निगाह-ए-जादू से।।

दिल को हैराँ बना गईं आँखें।।


उस ने देखा था किस नज़र से मुझे।।

दिल में गोया समा गईं आँखें।।


हाल सुनते वो क्या मिरा हसरत।।

वो तो कहिए सुना गईं आँखें।।


~हसरत मोहानी 



• दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है।

आख़िर इस दर्द की दवा क्या है।।


जब कि तुझ बिन नहीं कोई मौजूद।

फिर ये हंगामा ऐ ख़ुदा क्या है।।


मैं भी मुँह में ज़बान रखता हूँ।

काश पूछो कि मुद्दआ' क्या है।।


हम हैं मुश्ताक़ और वो बे-ज़ार।

या इलाही ये माजरा क्या है।।


सब्ज़ा ओ गुल कहाँ से आए हैं।

अब्र क्या चीज़ है हवा क्या है।।


~मिर्ज़ा गालिब 


Heart Touching Urdu ghazals


• दिल में किसी के राह किए जा रहा हूँ मैं।।

कितना हसीं गुनाह किए जा रहा हूँ मैं।।


मुझ से लगे हैं इश्क़ की अज़्मत को चार चाँद।।

ख़ुद हुस्न को गवाह किए जा रहा हूँ मैं।।


दुनिया-ए-दिल तबाह किए जा रहा हूँ मैं।।

सर्फ़-ए-निगाह-ओ-आह किए जा रहा हूँ मैं।।


मासूमी-ए-जमाल को भी जिन पे रश्क है।।

ऐसे भी कुछ गुनाह किए जा रहा हूँ मैं।।


उठती नहीं है आँख मगर उस के रू-ब-रू।।

नादीदा इक निगाह किए जा रहा हूँ मैं।।


यूँ ज़िंदगी गुज़ार रहा हूँ तिरे बग़ैर।।

जैसे कोई गुनाह किए जा रहा हूँ मैं।।


~ज़िगर मुरादाबादी 


Best Urdu Ghazal in Hindi


• दिल धड़कने का सबब याद आया।।

वो तिरी याद थी अब याद आया।।


आज मुश्किल था सँभलना ऐ दोस्त।।

तू मुसीबत में अजब याद आया।।


तेरा भूला हुआ पैमान-ए-वफ़ा।।

मर रहेंगे अगर अब याद आया।।


हाल-ए-दिल हम भी सुनाते लेकिन।।

जब वो रुख़्सत हुआ तब याद आया।।


बैठ कर साया-ए-गुल में नासिर।।

हम बहुत रोए वो जब याद आया।।


फिर कई लोग नज़र से गुज़रे

फिर कोई शहर-ए-तरब याद आया।।


~नसीर काजमी 


    उर्दू की बेहतरीन ग़ज़लें


• प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है।।

नए परिंदों को उड़ने में वक़्त तो लगता है।।


गाँठ अगर लग जाए तो फिर रिश्ते हों या डोरी।।

लाख करें कोशिश खुलने में वक़्त तो लगता है।।


जिस्म की बात नहीं थी उन के दिल तक जाना था।।

लम्बी दूरी तय करने में वक़्त तो लगता है।।


हम ने इलाज-ए-ज़ख़्म-ए-दिल तो ढूँड लिया लेकिन।।

गहरे ज़ख़्मों को भरने में वक़्त तो लगता है।।


~हस्तीमल हस्ती 


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